अब तुम जाओ|
बोलना तुम्हे होता नहीं है
क्या वास्तव में
मुझसे साझा करने को तुम्हारे पास कुछ नहीं होता?
मुझे तो तुम्हारे झगड़ने से
भी कोई परेशानी नहीं
पर तुम गूंगी गुडिया
के अपने अवतारी रूप से बाहर आकर
हमारी मुलाकातों को
सजीव और दो पक्षीय तो बनाओ
अभी तो होता यह है
कि मैं ही रेडियो की तरह
बोलता हूँ
हर पहल मुझे ही करनी होती है
इससे भी कोई शिकवा नहीं
अगर खामोशी तुम्हारा आनंद हो
पर खलता है
जब तुम अपने अंदर शिकायत
भरे रखते हो
पर उसे भी मुझसे न कह कर
उनकी संख्या
और तींव्रता बढाए चले जाते हो|
अरे, कभी-कभी मुझे
ऐसा लगता है कि तुमसे अच्छी तो तुम्हारी याद है
जो जब मैं चाहूँ
मेरे पास आ बैठती है
और मेरी हर बात में
पूरी गर्मजोशी से मेरा साथ देती है|
तुम्हे पता है तुम्हारे आने से पहले
मैं तुम्हारी याद के साथ ही बैठा था,
कितने रचनात्मक क्षण थे वे!
तुम्हारी याद के सामने, उसके साथ
मैंने दो पंक्तियाँ भी रचीं
तुम सुनोगे?
” मैंने जब झुक कर कहा,
बस शुक्रिया!
जिंदगी पशीमां हो गई|”
अब तुम जाओ!
तुम्हारे जाने के बाद
मैं तुम्हारी याद के साथ
कुछ पल ऐसे तो बिता लूंगा
जहां मुझे लगेगा
तुम पूरी की पूरी
बिना किसी लागलपेट के
मेरे साथ हो|
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