Archive for ‘संगीत’

जनवरी 11, 2023

मोहम्मद रफ़ी और कांग्रेस का चुनावी गीत

भारत द्वारा 1947 में ब्रितानी साम्राज्यवाद से मुक्ति पाने के बाद हिंदी सिने संगीत के पटल पर लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, मुकेश, हेमंत कुमार, तलत महमूद, मन्ना डे, आशा भोसले, और गीता दत्त बहुत बड़े गायक रहे हैं जिनके प्रशंसक सम्पूर्ण भारत में रहे हैं| इन बड़े गायकों की समय समय पर भिन्न राजनीतिक निष्ठाएं रही हैं| इन गायकों ने सीमाओं पर तैनात फौज़ियों के मनोरंजन हेतु सीमाओं पर जाकर दुर्गम परिस्थितियों में गीत गाये हैं| ये देश और समाज के हित में किये चैरिटी कार्यक्रमों में सम्मिलित हुए हैं और ऐसा भी संभव है कि व्यक्तिगत संबंधों हेतु किन्ही राजनेता के चुनाव प्रचार में भी इनमें से कुछ गायक सम्मिलित हुए हों| लेकिन किसी राजनीतिक दल के चुनावी गीत इन्होंने गाये हों, ऐसे गीत बिना सुने इन गायकों के प्रशंसक इस बात को आसानी से मानेंगे नहीं|

कभी कांग्रेस का चुनावी निशान “दो बैलों की जोड़ी” हुआ करता था| श्रीमती इंदिरा गांधी ने पुरानी कांग्रेस तोड़कर कांग्रेस (आर) का गठन किया तो उन्हें चुनावी चिह्न मिला “गाए और बछड़े” का| आपातकाल के बाद जनता सरकार के समय 1978 में कांग्रेस (आई) का जन्म हुआ तो चुनावी चिह्न मिला “हाथ का निशान“|

साठ के दशक में “दो बैलों की जोड़ी” के निशान के समय चुनाव में कांग्रेस के प्रचार के लिए मोहम्मद रफ़ी ने चुनावी गीत गाया|

इस गीत में सबसे बड़ी विशेषता है कि उस समय तक कांग्रेस द्वारा किये गए कार्यों के आधार पर नहीं वरन कांग्रेस द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में किये संघर्षों के उल्लेख से जनता में भावनाएं जगा कर कांग्रेस को वोट देने की अपील की जा रही है|

रफ़ी द्वारा गाये इस चुनावी गीत पर हरेक के अपने विचार उत्पन्न होंगे| बहुतों के लिए यह एक परिपाटी का निर्वाह करना होगा बहुतों के लिए इस काम के लिए रफ़ी का दर्जा एक स्वतंत्र कलाकार के रूप में कम हो जाएगा| यहाँ स्मृति में लाया जा सकता है कि आपातकाल में संजय गांधी के निर्देशानुसार किशोर कुमार ने उनके किसी प्रोपेगंडा सभा में गीत गाने से इनकार कर दिया था जिसकी सजा स्वरूप ऑल इण्डिया रेडियो पर किशोर कुमार के गाने बजाने पर कई साल प्रतिबन्ध रहा|

नवम्बर 21, 2014

विलक्षण बाल-गायिका और ‘कुमार विश्वास’

१९ नवंबर को किसी ने कविता के मंच के प्रसिद्द हस्ताक्षर और आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास को नीचे दिये वीडियो का लिंक भेजा |

 

बालिका की विलक्षण गायन प्रतिभा से कोई संगीत प्रेमी प्रभावित न हो ऐसा संभव ही नहीं है| हर संगीत प्रेमी को लगेगा कि यह बालिका सही प्रशिक्षण पाकर संगीत की ऊँचाइयों को प्राप्त करेगी पर ऐसा होना सबके साथ संभव नहीं होता| कुमार विश्वास भी बालिका के गायन से प्रभावित हुए पर जब पता चला कि इस बालिका का परिवार संभवतः आर्थिक रूप से समर्थ नहीं है तो बहुतों की तरह उन्हें भी भय लगा कि इस अनूठी बाल-गायिका का संगीत कहीं गरीबी के कारण दम न तोड़ दे| तब उन्होंने नीचे दिया सन्देश लिखा|

“कुछ ऐसे फूल हैं जिन्हे मिला नहीं माहौल ,
महक रहे हैं मगर जंगलों में रहते हैं…..!”
किसी ने ये विडिओ भेजा है ! उनके अनुसार विडिओ में दिख रही बच्ची घरेलु सहायक का काम करती है ! दस बार सुन चुका हूँ और आखँ की कोर हर बार भीग रही है ! आप में से कोई अगर इस बेटी का अता-पता निकाल सके तो बड़ी कृपा होगी ! माँ सरस्वती साक्षात इस शिशु-कंठ पर विराजमान है ! जीती रहो स्वर-कोकिला ! बस ये मिल जाये तो इसे सर्वोत्तम शिक्षा और साधना का ज़िम्मा मेरा ! ढूँढो दोस्तों अगली सम्भावना को !

 

सन्देश ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सअप के माध्यमों से लाखों लोगों तक पहुंचा| और बालिका की खोज सम्पन्न हुयी| कुमार विश्वास अपने वादे के मुताबिक़ बालिका के अच्छे भविष्य के लिए प्रयासरत हैं|

 

आद्य शकराचार्य की आविर्भाव भूमि केरल के एक तटीय गावँ में नन्ही जयलक्ष्मी मिल गयी है ! शाम तक उसके माता-पिता से बात भी हो जाएगी ! सब कुछ ठीक रहा तो कुछ ही दिन में, माँ शारदा की यह नन्ही-बेटी विधिवत संगीत-शिक्षा ग्रहण कर रही होगी ! कोशिश करूँगा कि किसी चैनल में उस पर एक शो भी बनवाऊँ ! आभार कोमल,राजश्री और मनोज का इस खोज को अंजाम तक पहुँचाने के लिए
“हर फूल को हक़ है कि चमन में हो क़ामयाब ,
माली को भी ये फ़र्ज़ मगर याद तो रहे.…।”

 

 

 

अगस्त 30, 2011

चाँद-रात

चाँद-रात को समर्पित गीत मिलना एक मुश्किल काम है।

सन 1947 में बनी फिल्म – मेंहदी, जिसमें नरगिस, बेगम पारा और करन दीवान ने मुख्य भूमिकायें निभाई थीं और संगीत दिया था गुलाम हैदर  ने, उस फिल्म में एक गीत मिलता है जो चाँद-रात की खुशियों का बड़ा ही सजीव प्रस्तुतीकरण करता है।
फिल्म मेंहदी का वह मधुर गीत खुद ही सुनकर आनंद उठायें।

मई 7, 2011

गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर: निष्फल कोई पूजा न होगी

आज भारत के गौरव गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर, जो मानवतावादी, प्रकृतिविद, कवि, चित्रकार, संगीतकार, लेखक, शिक्षाविद, और भारतीय संस्कृति एवम कला के ध्वजवाहक रहे हैं, की 150 वीं जयंती का शुभ अवसर है।

वे देशों की सीमाओं को पार कर गये हैं और पिछले सौ सालों से भी ज्यादा समय से दुनिया उनकी योग्यता से लाभान्वित होती आ रही है।

गुरुदेव ने कालजयी काव्य की रचना की है। एक से बढ़कर एक उनकी कवितायें हैं और बहुत सारी कविताओं को पढ़कर ऐसा लगता है कि इससे बेहतर और क्या हो सकता है पर उनकी अपनी ही रचना आकर इस धारणा को तोड़ देती है और पाठक/मानव मुग्ध होकर रबिन्द्र साहित्य में आगे की ओर बढ़ जाता है।

उनकी एक कविता है जिसके बारे में बिना किसी संकोच के साथ कहा जा सकता है कि दुनिया का कोई भी कवि इस भाव से ऊपर नहीं जा सकता जो गुरुदेव टैगोर ने अपनी कविता में रच दिया है। इससे बेहतर कवितायें रची जा सकती हैं, रची गयी हैं और खुद गुरुदेव ने ही रची हैं, इससे ज्यादा लय वाली कवितायें भी रची गयी हैं, पर इस कविता के भाव का मुकाबला कहीं नहीं मिलता। यह अनंत काल तक शाश्वत रहने वाली कविता है। कालजयी आशा के सहारे की इससे बेहतर अभिव्यक्त्ति ईश्वर कर सके तो कर दे वरना मानव के लिये तो यह संभव नहीं दिखायी देता।

जो पूजायें अधूरी रहीं
वे व्यर्थ न गयीं
जो फूल खिलने से पहले मुर्झा गये
और नदियां रेगिस्तानों में खो गयीं
वे भी नष्ट नहीं हुयीं
जो कुछ रह गया पीछे जीवन में
जानता हूँ
निष्फल न होगा
जो मैं गा न सका
बजा न सका
हे प्रकृत्ति!
वह तुम्हारे साज पर बजता रहेगा।

उपरोक्त्त कविता को रचते समय मानो प्रकृत्ति स्वयं अपना सच टैगोर के माध्यम से धरती पर बिखेर रही थी। इस कविता की रचना करने वाला कवि असाधारण प्रतिभा का मालिक ही हो सकता है। इसे रचने वाला केवल कवि न होकर अध्यात्म के रास्ते पर चलने वाला ऋषि ही हो सकता है।

भारत को जो राष्ट्रगान गुरुदेव टैगोर ने दिया है वह चाहे कहीं भी बज जाये, चाहे वह स्कूल और शिक्षण संस्थाओं के प्रांगण हों या भारतीयों का अन्यत्र होने वाला जमावड़ा, यह हमेशा ही भारतीयों के रोम रोम को भारतीयता के भाव से भर देता है।

भारत की स्वर कोकिलायें लता मंगेशकर और आशा भोसले ने इसे गाया है

और हाल के सालों में ए.आर. रहमान के संगीत निर्देशन में भारतीय संगीत की जानी मानी विभूतियों ने इसकी संगीतमयी प्रस्तुती में अपना योगदान दिया है।

भारत का बच्चा बच्चा तो इसे गाता ही है।

गुरुदेव टैगोर का सृजन करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित करता आ रहा है और भविष्य में भी करता रहेगा। उन्होने अपनी सृजनात्मक क्षमता से भारत में कला की विरासत को समृद्ध करने में और अपनी वैश्विक दृष्टि के बलबूते देश की उदार परम्परा को सहेजे रखने में  उल्लेखनीय योगदान दिया है।

भारत भूमि धन्य रही है गुरुदेव टैगोर के यहाँ जन्म लेने से।

ऐसी विलक्षण मेधा को शत शत नमन।

…[राकेश]

जुलाई 2, 2010

Waka Waka : धुरंधर और भी हैं शकीरा के अलावा

आप नहीं मानते?

हाथ कँगन को आरसी क्या!

स्वयं आनंद लें और यह जानने में क्या मजा कि कितना वीडियो सच्चा है और कितना इस पर काम हुआ है।

आनंद तो इन महाश्य के कारनामे देखने में ही है जो शकीरा को तगड़ी चुनौती देने की तैयारी में हैं।

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