भारत द्वारा 1947 में ब्रितानी साम्राज्यवाद से मुक्ति पाने के बाद हिंदी सिने संगीत के पटल पर लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार, मुकेश, हेमंत कुमार, तलत महमूद, मन्ना डे, आशा भोसले, और गीता दत्त बहुत बड़े गायक रहे हैं जिनके प्रशंसक सम्पूर्ण भारत में रहे हैं| इन बड़े गायकों की समय समय पर भिन्न राजनीतिक निष्ठाएं रही हैं| इन गायकों ने सीमाओं पर तैनात फौज़ियों के मनोरंजन हेतु सीमाओं पर जाकर दुर्गम परिस्थितियों में गीत गाये हैं| ये देश और समाज के हित में किये चैरिटी कार्यक्रमों में सम्मिलित हुए हैं और ऐसा भी संभव है कि व्यक्तिगत संबंधों हेतु किन्ही राजनेता के चुनाव प्रचार में भी इनमें से कुछ गायक सम्मिलित हुए हों| लेकिन किसी राजनीतिक दल के चुनावी गीत इन्होंने गाये हों, ऐसे गीत बिना सुने इन गायकों के प्रशंसक इस बात को आसानी से मानेंगे नहीं|
कभी कांग्रेस का चुनावी निशान “दो बैलों की जोड़ी” हुआ करता था| श्रीमती इंदिरा गांधी ने पुरानी कांग्रेस तोड़कर कांग्रेस (आर) का गठन किया तो उन्हें चुनावी चिह्न मिला “गाए और बछड़े” का| आपातकाल के बाद जनता सरकार के समय 1978 में कांग्रेस (आई) का जन्म हुआ तो चुनावी चिह्न मिला “हाथ का निशान“|
साठ के दशक में “दो बैलों की जोड़ी” के निशान के समय चुनाव में कांग्रेस के प्रचार के लिए मोहम्मद रफ़ी ने चुनावी गीत गाया|
इस गीत में सबसे बड़ी विशेषता है कि उस समय तक कांग्रेस द्वारा किये गए कार्यों के आधार पर नहीं वरन कांग्रेस द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में किये संघर्षों के उल्लेख से जनता में भावनाएं जगा कर कांग्रेस को वोट देने की अपील की जा रही है|
रफ़ी द्वारा गाये इस चुनावी गीत पर हरेक के अपने विचार उत्पन्न होंगे| बहुतों के लिए यह एक परिपाटी का निर्वाह करना होगा बहुतों के लिए इस काम के लिए रफ़ी का दर्जा एक स्वतंत्र कलाकार के रूप में कम हो जाएगा| यहाँ स्मृति में लाया जा सकता है कि आपातकाल में संजय गांधी के निर्देशानुसार किशोर कुमार ने उनके किसी प्रोपेगंडा सभा में गीत गाने से इनकार कर दिया था जिसकी सजा स्वरूप ऑल इण्डिया रेडियो पर किशोर कुमार के गाने बजाने पर कई साल प्रतिबन्ध रहा|