“इंकलाब जिंदाबाद” क्या है … भगत सिंह

bhagat2[भगतसिंह ने अपने विचार स्पष्ट रूप से भारतीय जनता के सामने रखे। उनके विचार में, क्रांती की तलवार विचारों की धार से ही तेज होती है। वे विचारधारात्मक क्रान्तिकारी हालात के लिये संघर्ष कर रहे थे। अपने विचारों पर हुए सभी वारों का उन्होने तर्कपूर्ण उत्तर दिया। यह वार अंग्रेजी सरकार की ओर से किये गये या देशी नेताओं की ओर से अखबारों में।

शहीद यतिन्द्रनाथ दास ६३ दिन की भूख हड़ताल के बाद शहीद हुए। Modern Review के संपादक रामानंद चट्टोपाद्ध्याय ने उनकी शहादत के बाद भारतीय जनता द्वारा शहीद के प्रति किए गये सम्मान और उनके “इंकलाब जिन्दाबाद” के नारे की आलोचना की। भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने Modern Review के संपादक को उनके उस संपादकीय का निम्नलिखित उत्तर दिया था। – सं]

श्री संपादक जी,
माडर्न रिव्यू,

आपने अपने सम्मानित पत्र के दिसंबर, १९२९ के अंक में एक टिप्पणी “इंकलाब जिन्दाबाद” शीर्षक से लिखी है और इस नारे को निरर्थक ठहराने की चेष्टा की है। आप सरीखे परिपक्व विचारक तथा अनुभवी और यशस्वी की रचना में दोष निकालना तथा उसका प्रतिवाद करना जिसे प्रत्येक भारतीय सम्मान की दृष्टी से देखता है, हमारे लिये बड़ी धृष्टता होगी। तो भी इस प्रश्न का उत्तर देना हम अपना कर्तव्य समझते हैं कि इस नारे से हमारा क्या अभिप्राय है?

यह आवश्यक है, क्यूं कि इस देश में इस समय इस नारे को सब लोगों तक पहुंचाने का कार्य हमारे हिस्से में आया है। इस नारे की रचना हमने नहीं की है। यही नारा रूस के क्रान्तिकारी आंदोलन में प्रयोग किया गया है। प्रसिद्ध समाजवादी लेखक अप्टन सिंक्लेयर ने अपने उपन्यासों “बोस्टन और आईल” में यही नारा कुछ अराजकतावादी क्रांतिकारी पात्रों के मुख से प्रयोग कराया है। इसका अर्थ क्या है? इसका यह अर्थ कदापि नहीं है सशत्र संघर्ष सदैव जारी रहे और कोई भी व्यवस्था अल्प समय के लिये भी स्थाई न रह सके। दूसरे शब्दों में देश और समाज में अराजकता फ़ैली रहे।

दीर्घकाल से प्रयोग में आने के कारण इस नारे को एक ऐसी विशेष भावना प्राप्त हो चुकी है, जो संभव है, भाषा के नियमों एवं कोष के आधार पर इसके शब्दों से उचित तर्कसम्मत रूप में सिद्ध न हो पाए, परंतु इसके साथ ही इस नारे से उन विचारों को पृथक नहीं किया जा सकता, जो इनके साथ जुड़े हुए हैं। ऐसे समस्त नारे एक ऐसे स्वीकृत अर्थ के द्योतक हैं, जो एक सीमा तक उनमें उत्पन्न हो गए हैं तथा एक सीमा तक उनमें नीहित हैं।

उदाहरण के लिये हम यतिन्द्रनाथ जिन्दाबाद का नारा लगाते हैं। इससे हमारा तात्पर्य यह होता है उनके जीवन के महान आदर्शों तथा उस अथक उत्साह को सदा-सदा के लिये बनाए रखें, जिसने इस महानतम बलिदानी को उस आदर्श के लिए अकथनीय कष्ट झेलने एवं असीम बलिदान करने की प्रेरणा दी। यह नारा लगाने से हमारी यह लालसा प्रकट होती है कि हम भी अपने आदर्शों के लिये अचूक उत्साह को अपनाएं। यही वह भावना है, जिसकी हम प्रशंसा करते हैं। इस प्रकार हमें “”इंकलाब” शब्द का अर्थ भी कोरे शाब्दिक रूप में नहीं लगाना चाहिये। इस शब्द का उचित एवं अनुचित प्रयोग करने वाले लोगों के हितों के आधार पर इसके साथ विभिन्न अर्थ एवं विभिन्न विशेषताएं जोड़ी जाती हैं। क्रांतिकारी की दृष्टि में यह एक पवित्र वाक्य है। हमने इस बात को ट्रिब्युनल के सम्मुख अपने वक्तव्य में स्पष्ट करने का प्रयास किया था।

इस वक्तव्य में हमने कहा था कि क्रांति (इंकलाब) का अर्थ अनिवार्य रूप से सशत्र आंदोलन नहीं होता। बम और पिस्तौल कभी-कभी क्रांति को सफ़ल बनाने के साधन मात्र हो सकते हैं। इसमें भी संदेह नहीं है कि कुछ आन्दोलनों में बम एवं पिस्तौल एक महत्वपूर्ण साधन सिद्ध होते हैं, परन्तु केवल इसी कारण से बम और पिस्तौल क्रान्ति के पर्यायवाची नहीं हो जाते। विद्रोह को क्रांति नहीं कहा जा सकता, यद्यपि यह हो सकता है कि विद्रोह का अंतिम परिणाम क्रांति हो।

इस वाक्य में “क्रान्ति” शब्द का अर्थ “प्रगति के लिए परिवर्तन की भावना एवं आकांक्षा” है। लोग साधारण जीवन की परंपरागत दशाओं के साथ चिपक जाते हैं और परिवर्तन के विचार मात्र से ही कांपने लगते हैं। यही एक अकर्मण्यता की भावना है, जिसके स्थान पर क्रांतिकारी भावना जाग्रत करने की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अकर्मण्यता का वातावरण निर्मित हो जाता है और रूढ़ीवादी शक्तियां मानव समाज को कुमार्ग पर ले जाती हैं।

क्रान्ति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थाई तौर पर ओत-प्रोत रहनी चाहिए, जिससे कि रूढ़िवादी शक्तियां मानव समाज की प्रगति की दौड़ में बाधा डालने के लिये संगठित न हो सकें। यह आवश्यक है कि पुरानी व्यवस्था सदैव न रहे और वह नई व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहे, जिससे कि आदर्श व्यवस्था संसार को बिगाड़ने से रोक सके। यह है हमारा वह अभिप्राय जिसको ह्रदय में रख कर “इंकलाब जिन्दाबाद” का नारा ऊंचा करते हैं।

भगतसिंह, बी. के. दत्त
२२ दिसंबर, १९२९
[“सरदार भगतसिंह के राजनैतिक दस्तावेज”, संपादक चमनलाल व प्रकाशक नेशनल बुक ट्रस्ट, इन्डिया]

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  1. इंकलाब जिन्दाबाद

  2. इंकलाब जिन्दाबाद

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