Archive for ‘अजीत सिद्धू’

दिसम्बर 3, 2012

भोपाल गैस त्रासदी के शिकार

https://i0.wp.com/www.thebhopalpost.com/wp-content/uploads/2012/05/getimage.jpg2 दिसंबर 1984 की वो काली भयावह रात ………… जब एक भयंकर मानवीय भूल ने लाखों निर्दोष और मासूम लोगों की ज़िन्दगी को दांव पर लगा दिया। उस रात हज़ारों लोगों की किस्मत में 3 दिसंबर 1984 का सवेरा देखना नहीं लिखा था. उस रात मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल स्थित बहुराष्ट्रीय कंपनी यूनियन कार्बाइड के एक प्लांट में हुए गैस के रिसाव ने देखते ही देखते समूचे शहर को अपनी आगोश में ले लिया और सोये हुए लोग हमेशा के लिए सोते ही रह गए। जो बच गए, वे भी अधमरी सी हालत में थे। देश के इतिहास में घटित इस सर्वाधिक ह्रदय विदारक औद्योगिक त्रासदी ने एक ऐसी अंतहीन पीड़ा दे डाली है, कि उस खौफनाक मंज़र को याद करके लोग आज भी सिहर उठते हैं। इस दुर्घटना में दृष्टिहीन और पंगु हुए लोगों के रोज़गार छिन गए, और उनके परिवार दर दर की ठोकरें खाने को विवश हो गए। मुट्ठी भर मुआवजा देकर इन पीड़ितों के मुंह बंद कर दिए गए और इस भूल की ज़िम्मेदार कंपनी और उसके आकाओं के विरुद्ध आज तक कोई कुछ नहीं कर सका, न सरकार और न ही अंतर्राष्ट्रीय पुलिस। न्याय के इंतज़ार में ही इस त्रासदी के हजारों पीड़ितों
ने दम तोड़ दिया। आज इस त्रासदी की 28 वीं बरसी पर, उन सभी को विनम्र श्रद्धांजलि, जो इस हादसे के शिकार हुए —

आई जो काल रात कि सुनसान कर गयी,
सोते हुए शहर को ही वीरान कर गयी।

उस रात सिवा मौत के, कोई कहीं ना था,
आबाद – शाद बस्तियां वीरान कर गयी।

विषकन्या पूंजीवाद की, गरीब देश में,
आकर अजीब तौर से विषदान कर गयी।

पहले से आदमी का था, संघर्ष कठिन ही,
जीवन का युद्ध और घमासान कर गयी।

हम जानते हैं कौन सी दुनिया से आके मौत,
इस तीसरी दुनिया को परेशान कर गयी।

दहशत को घोल करके हवाओं में विश्व की,
पूरी मनुष्य जाती का अपमान कर गयी|

अजीत सिद्धू

 

Pic. Courtesy – The Bhopal Post

दिसम्बर 3, 2012

भोपाल गैस त्रासदी – अन्याय की 28वीं वर्षगाठं

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हमारे देश के इतिहास में घटित सर्वाधिक ह्रदय विदारक औद्योगिक त्रासदी को आज 28 बरस बीत गए, फिर भी उस खौफनाक मंज़र को वो लोग आज तक नहीं भुला पाए हैं, जिन्हें इस दुर्घटना ने ताउम्र रोने पर विवश कर दिया है। इस भयंकर मानवीय भूल ने निर्दोष और मासूम जानों के साथ ऐसा खिलवाड़ किया, की मानवता तार – तार हो बिखर गयी।

इस त्रासदी में हमेशा के लिए अपनी जान खो देने वाले निर्दोष व्यक्तियों को भाव भीनी श्रद्धांजलि अर्पित है —–

फोस्जीन गैस हज़ारों को लगा दे फांसी,
ये अगर भूल है तो ऐसी भूल क्या होगी,
ज़िन्दगी छीनकर लाशों के साथ हमदर्दी,
कब्र गंगा से भी धोओ तो फूल क्या होगी।

क्या कभी मौत ने ऐसा लिबास पहना है,
भीगी पलकों ने कभी ऐसी सदी देखी है,
तुमने देखी है फ़कत गंगो-जमन की धारा,
मैंने भोपाल में लाशों की नदी देखी है।

ज़िन्दगी थक गयी लाशों को कफ़न दे-देकर,
ये खबर लाये हैं भोपाल से आने वाले,
एक दीवार बनाना है वहां लाशों की,
हैं कहाँ चीन की दीवार उठाने वाले।

ये मुआवजों के लिए लाशों की हेरा – फेरी,
अब ये खतरा है के लाशों का भी सौदा होगा,
आईने तोड़कर पत्थर को पूजने वालों,
ये इबादत नहीं, भगवान से धोखा होगा।

राष्ट्रमाता के लिए फूट – फूट कर रोये,
उनके बेटों के लिए कोई अश्क़ पिघलेगा,
तुमने बांटे थे जिन्हें मौत के पट्टे घर – घर,
उन अभागों का कोई अस्थि कलश निकलेगा। *

नागासाकी सी सुबह जिनको मिली तोहफे में,
बस्तियां जिनकी हुयीं स्याह रात में तब्दील,
मेहरबां होके कभी उस तरफ से गुज़रो तो,
नकी कब्रों पे भी रख आना कभी एक कंदील।

[* इस दुर्घटना के एक माह पहले ही प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी का अवसान हुआ था, और सारे देश में उनका अस्थि कलश जुलूस के रूप में घुमाया गया था, इसी सन्दर्भ में यह पंक्ति कही गयी है।]

( यह कविता, भोपाल गैस त्रासदी के कुछ दिनों पश्चात् इंदौर के स्थानीय समाचार पत्र दैनिक नयी दुनिया में प्रकाशित हुयी थी और इस कविता ने दिल को ऐसा छुआ था कि इसे अपनी डायरी में लिखे बिना नहीं रह सकी थी। इस कविता के रचयिता का नाम भी नोट नहीं किया था। आज इस दुर्घटना की 28 वीं बरसी पर इस कविता की याद हो आई)

अजीत सिद्धू

Pic. Courtesy – The Bhopal Post