भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत पर उनकी शान में आज की तारीख में कसीदे काढने वाली भारतीय जनता में से बहुसंख्यक क्या जीते जागते इन क्रांतिकारियों को आज की परिस्थितियों में स्वीकार भी कर पाते?
भगत सिंह और उनके साथी तो आज भी समाज के सबसे निचले पायदान पर जी रहे वंचित तबके के हितों के लिए संघर्ष कर रहे होते, आदिवासियों के हितों, देश के जंगल, पानी और आकाश और पर्यावरण की रक्षा के लिए अलख जगा रहे होते और निश्चित तौर पर वे जन-शोषक कोर्पोरेट हितों के विरुद्ध खड़े होते, और निश्चित ही किसी भी राजनैतिक दल की सरकार भारत में होती वह उन्हें पसंद नहीं करती|
उन पर तो संभवतः आजाद भारत में भी मुक़दमे ही चलते|
झूठे कसीदों से फिर क्या लाभ, सिवाय फील गुड एहसासात रखने के कि कितने महान लोगों की स्मृति में हम स्टेट्स लिख रहे हैं ?
भगत सिंह एवं उनके साथियों के पक्ष में खड़ा होना आज भी क्रांतिकारी ही है और आधुनिक भारत का बाशिंदा इस बात से मुँह नहीं मोड़ सकता कि अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के वशीभूत होने के कारण किसी भी किस्म के सजग आंदोलन के पक्ष में वह खड़ा हो नहीं सकता|
आज भगत सिंह और उनके साथी होते तो उनके क्रांतिकारी विचारों के कारण, सोशल मीडिया पर ट्रोल्स उन्हें गरिया रहे होते, उनके साथ गाली-गलौज भी हो सकती थी|
ऐसे में भगत सिंह और उनके साथियों को श्रद्धांजलि देने के प्रयास दोहरेपन के सिवाय कुछ भी नहीं हैं| उनके कार्यों की ताब आज की तारीख में न सहने की मानसिकता के कारण उन्हें झूठी श्रद्धांजलि देने के प्रयास २५ साल से कम उम्र में ही देश की खातिर फांसी पर चढ़ जाने वाले इस महावीर और उनके साथियों के बलिदान के प्रति अवमानना ही कहे जायेंगें|
पुनश्चा:
१) डा. राम मनोहर लोहिया का जन्म २३ मार्च को हुआ पर वे इन शहीदों की सहादत की स्मृति में अपना जन्मदिन नहीं मनाते थे|
२) पंजाब के अनूठे कवि पाश, भगत सिंह और उनके शहीद साथियों के बहुत बड़े प्रशंसक थे, और संयोगवश पंजाब में आतंकवादियों दवारा उनकी ह्त्या भी इसी दिन २३ मार्च १९८८ को हुयी|
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