Archive for ‘चित्र’

जनवरी 5, 2023

‘प्रेमचंद’ का अंतिम माह और फोटोग्राफर ‘अज्ञेय’

सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन‘ और प्रेमचंद का अपरोक्ष संबंध तब का है जब तब के लगभग 20 वर्ष के युवक क्रांतिकारी वात्स्यायन जी चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के दल और कार्यवाहियों से जुड़े होने के कारण अंग्रेज सरकार के गिरफ्त में आकर जेल में सजा काट रहे थे और सन 1932 में लेखक जेनेन्द्र के हाथों उन्होंने जेल से ही कुछ कहानियां बाहर भिजवाई थीं और जेनेन्द्र ने उन्हें प्रेमचंद को दिया था| प्रेमचंद द्वारा पसंद आने वाली कहानी को अपनी पत्रिका में छपने देते समय जेनेन्द्र से जब उन्होंने कथा लेखक का नाम पूछा तो जेनेन्द्र ने कहा कि जिन परिस्थितियों में लेखक अभी है उनमें उसका नाम उजागर करना उचित नहीं| लेखक तो अज्ञेय है| प्रेमचंद ने ‘अज्ञेय‘ नाम से ही कथा छाप दी और गद्य लेखक के रूप में वात्स्यायन जी का नाम ‘अज्ञेय‘ प्रसिद्द हो गया|

प्रेमचंद मात्र 56 वर्ष की आयु में ही जीवन को अलविदा कह गए| लम्बी बीमारी से 60 साल से कुछ साल कम की आयु में ही चला जाना उनके जीवन के संघर्ष को दर्शाता है| प्रेमचंद विशुद्ध लेखक थे अन्यथा उन्हें हिंदी फ़िल्म उद्योग ने भी न्यौता देकर वहां कथा-पटकथा लेखन हेतु बुलाया था और फिल्मों में लेखन से निस्संदेह उन्हें बहुत धन मिलता जिससे उनके जीवन का आर्थिक संकट दूर होता और वे स्वास्थ्य से भरा जीवन जी सकते थे| लेकिन उन्होंने समझौतावादी लेखन नहीं अपनाया और हजारों कठिनाइयों को झेलने के बाद भी वे साहित्य सृजन में ही रत रहे|

ग्रामीण परिवेश के कालजयी चरित्र उन्होंने गढ़े|

1936 के सितम्बर माह में अज्ञेय रोगग्रस्त प्रेमचंद को देखने बनारस गए और तब उन्होंने यह फोटो खींचा| यह एक ऐतिहासिक फोटो है| कैमरे में सीधे देखते रोग्यशैय्या पर लेटे प्रेमचंद की यह तसवीर बेहद जीवंत है| प्रेमचंद की खुली आँखें ऐसा आभास देती हैं मानो पूरे हिंदी समाज से मुखातिब हों| 1936 के 8 अक्तूबर को महान लेखक प्रेमचंद का निधन हो गया|

प्रेमचंद की तसवीर खींचकर. एक तरह से उन क्षणों का दस्तावेजीकरण करके, अज्ञेय ने हिंदी साहित्य समाज का बहुत भला किया|

फोटोग्राफर ‘अज्ञेय‘ ने हिंदी साहित्य की बड़ी बड़ी विभूतियों और पिछली सदी के तीस के दशक से अस्सी के दशक तक के पांच दशकों में घटित हुए बहुत से हिंदी साहित्य से जुड़े सम्मेलनों और उनमें सम्मिलित होते दिग्गज लेखक, कवियों आदि की तसवीरें, देश विदेश भ्रमण के दौरान खींची तसवीरें, और प्रकृति से जुडी तसवीरें आदि खींचकर फोटोग्राफी के क्षेत्र में अपने सिद्धहस्त कलाकार होने को न केवल प्रमाणित किया बल्कि दुलर्भ दस्तावेजीकरण किया| अज्ञेय द्वारा स्थापित ट्रस्ट ‘वत्सल निधि‘ से जुड़े जीवित लोग या अज्ञेय के कार्यों पर कॉपीराईट का नियंत्रण रखने वाले लोगों को फोटोग्राफर अज्ञेय की कलाकारी को फोटो प्रदर्शनी के माध्यम से जन साधारण के सम्मुख लाना चाहिए या कम से कम अज्ञेय को समर्पित एक वेबसाईट बनवाकर उनके सभी कार्यों को वहां प्रदर्शित करना चाहिए|

जीवन भर अज्ञेय नए से नए लेखक कवि, व कलाकार व उनकी कलाओं को आगे बढाने का कार्य करते रहे| ऐसे कर्मठ, उदार, दिलदार अज्ञेय के कार्यों की झांकी जनसाधारण के समक्ष सहज ही सुलभ हो, यह एक नितांत न्यायोचित और आसानी से पूर्ण हो सकने वाली इच्छा है|

जुलाई 20, 2017

हमारी गाए – मोहम्मद इस्माइल

फ़रवरी 23, 2017

भगवान शिव : मकबूल फ़िदा हुसैन के तसव्वुर से

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फ़रवरी 21, 2017

अमृता शेरगिल के चित्र को देख कर …

amritashergil1अंधी रात का तुम्हारा तन :

दाहिने हाथ की उठी हथेली ;

नग्न कच्चे कुचों –

कटी के मध्य देश- –

लौह की जाँघों से

आंतरिक अरुणोदय की झलक मारता है

ओ चित्र में अंकित युवती:

तुम सुंदर हो!

मौन खड़ी भी तुम विद्रोही शक्ति हो!

(केदारनाथ अग्रवाल – ०९ अक्टूबर १९६०)

 

जनवरी 26, 2015

आर के लक्ष्मण : अलविदा ‘कॉमन मैन’ के रचियता

rk laxmanrklaxman2आर के लक्ष्मण ने दशकों तक हिन्दुस्तान को प्रभावित करने वाले सामाजिक एवं राजनीतिक मुद्दों को अपने कार्टूनों के जरिये इस तरीके से उभारा कि मुद्दों को हास्य और व्यंग्य के तरीके से समझने की एक परम्परा ने लोगों के अंदर अपनी पकड़ बनाई| उनके कार्टूनों के शिकार बने नेता भी उनके कार्टूनों का उसी बेसब्री से इंतजार किया करते थे जैसा कि आम पाठक किया करता था|

अब आर के लक्ष्मण नहीं रहे और अब “You Said It” में नये कार्टून स्थान नहीं पायेंगे|

उनके कार्टूनों की विरासत से अनभिज्ञ पीढ़ी शायद उस जीनियस परम्परा को नहीं जान पायेगी जो आर के लक्ष्मण उन्होंने शुरू की थी|

 

नवम्बर 6, 2014

जिंदगी और मौत की जंग के फोटो ने फोटोग्राफर से आत्महत्या करवाई…

FamineSudanसाउथ अफ्रीकन फोटो जर्नलिस्ट Kevin Carter 1993 के मार्च माह में अकाल को कवर करने के सूडान गये थे, जहां यू.एन के फूडिंग कैम्प के बाहर एक दिल चीरने वाला  दृश्य देखकर उन्होंने दृश्य को अपने कैमरे में कैद कर लिया|

सूडान में अकाल के कारण भूखमरी से कृशकाय हो चुकी एक बालिका जमीन पर घिसट घिसट कर यू.एन के फूडिंग कैम्प की ओर जा रही है और एक गिद्ध उसके पीछे आकर बैठ गया है इस इंतजार एन कि जल्द ही ज़िंदगी बालिका का साथ छोड़ देगी और उसके लिए भोजन का इंतजाम कर देगी|

इस फोटो को 1994 में अप्रैल माह में पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया और यह फोटो दुनिया भर के अखबारों और पत्रिकाओं में छपा और चर्चा का केन्द्र बना|

भूख से कंकाल बन चुकी अभागिन बालिका का क्या हुआ?  क्या वह बच पाई?

27 July 1994 को Kevin Carter  ने आत्महत्या कर ली|

उनकी कहानी 2010 की Canadian-South African फिल्म – The Bang Bang Club में दर्शाई गई है|

Kevin Carter के सुसाइड नोट में लिखा था –

“I’m really, really sorry. The pain of life overrides the joy to the point that joy does not exist… depressed … without phone … money for rent … money for child support … money for debts … money!!! … I am haunted by the vivid memories of killings and corpses and anger and pain … of starving or wounded children, of trigger-happy madmen, often police, of killer executioners …”

 

अक्टूबर 31, 2014

महात्मा गांधी बनाम अंग्रेज : कार्टूनिस्ट शंकर की निगाह से

गांधी विरोधी ‘अंग्रेजों’ की खिंचाई कार्टूनिस्ट शंकर स्टाइल

लाजवाब, ऐतिहासिक कार्टून

Gandhicartoon

कार्टून : साभार श्री ओम थानवी (जनसत्ता)

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अगस्त 14, 2010

पाकिस्तान : बाढ़ का प्रकोप – चंद तस्वीरें

प्रकृति का प्रकोप मानव को यदा कदा सहना ही पड़ता है और ऐसे समय मानव विवश खड़ा दिखायी देता है। विकसित देश अपनी सामर्थ्य और बेहतर प्रबंधन के बलबूते अपनी जनता को कम से कम हानि और परेशानी पहुँचने देते हैं जबकि विकासशील और गरीब देशों में प्राकृतिक प्रकोप कहर बन कर लोगों पर टूट पड़ता है।

इन गरीब और विकासशील देशों का दुर्भाग्य है कि सर्दी, गरमी और बरसात तीनों ही तरीके के मौसम में इन्हे प्राकृतिक प्रकोप की विभीषिका सहनी पड़ती है। प्रकृति के साथ मानव की छेड़छाड़ भी इन प्राकृतिक प्रकोपों को जब तब आमंत्रण देती रहती है।

इन विभीषिकाओं से परे सरकारों का प्रबंधन विचार करने का मुद्दा है।

नीचे दिये गये लिंक में दी गयी तस्वीरें देखें और बाढ़ के द्वारा दर्शायी गयी विनाश लीला को देखें।
चित्र इतने सजीव हैं मानो हरेक चित्र चित्कार कर रहा हो।

पाकिस्तान में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों की तस्वीरें

ऐसे समय एक प्रश्न तो उठता ही है कि उसकी बेहतरीन कला की तारीफ कैसे करें क्योंकि कला एक भयानक ट्रेजडी से उत्पन्न दुख और पीड़ा  को उसके नग्न रुप में हमारे सम्मुख रख रही है। इतना विनाश देख कर पीड़ित हो चुके दिल और दिमाग तारीफ करने के काबिल नहीं रहते।

इन चित्रों से कहीं लगता है कि पाकिस्तान कुछ अलग है हमारे भारत से या वहाँ के लोग अलग हैं?

ऐसे ही लाचार लोग वहाँ भी हैं जैसे हमारे यहाँ।

बच्चों के गालों पर आँसू ऐसे ही सूख गये हैं जैस हमारे यहाँ सूख जाते हैं।

कुछ समय पूर्व प्रकाशित, श्री कृष्ण बिहारी जी की कविता मेरे गाँव का मुकद्दर कितना सटीक चित्रण करती है ऐसे माहौल का!