‘सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन‘ और प्रेमचंद का अपरोक्ष संबंध तब का है जब तब के लगभग 20 वर्ष के युवक क्रांतिकारी वात्स्यायन जी चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के दल और कार्यवाहियों से जुड़े होने के कारण अंग्रेज सरकार के गिरफ्त में आकर जेल में सजा काट रहे थे और सन 1932 में लेखक जेनेन्द्र के हाथों उन्होंने जेल से ही कुछ कहानियां बाहर भिजवाई थीं और जेनेन्द्र ने उन्हें प्रेमचंद को दिया था| प्रेमचंद द्वारा पसंद आने वाली कहानी को अपनी पत्रिका में छपने देते समय जेनेन्द्र से जब उन्होंने कथा लेखक का नाम पूछा तो जेनेन्द्र ने कहा कि जिन परिस्थितियों में लेखक अभी है उनमें उसका नाम उजागर करना उचित नहीं| लेखक तो अज्ञेय है| प्रेमचंद ने ‘अज्ञेय‘ नाम से ही कथा छाप दी और गद्य लेखक के रूप में वात्स्यायन जी का नाम ‘अज्ञेय‘ प्रसिद्द हो गया|
प्रेमचंद मात्र 56 वर्ष की आयु में ही जीवन को अलविदा कह गए| लम्बी बीमारी से 60 साल से कुछ साल कम की आयु में ही चला जाना उनके जीवन के संघर्ष को दर्शाता है| प्रेमचंद विशुद्ध लेखक थे अन्यथा उन्हें हिंदी फ़िल्म उद्योग ने भी न्यौता देकर वहां कथा-पटकथा लेखन हेतु बुलाया था और फिल्मों में लेखन से निस्संदेह उन्हें बहुत धन मिलता जिससे उनके जीवन का आर्थिक संकट दूर होता और वे स्वास्थ्य से भरा जीवन जी सकते थे| लेकिन उन्होंने समझौतावादी लेखन नहीं अपनाया और हजारों कठिनाइयों को झेलने के बाद भी वे साहित्य सृजन में ही रत रहे|
ग्रामीण परिवेश के कालजयी चरित्र उन्होंने गढ़े|
1936 के सितम्बर माह में अज्ञेय रोगग्रस्त प्रेमचंद को देखने बनारस गए और तब उन्होंने यह फोटो खींचा| यह एक ऐतिहासिक फोटो है| कैमरे में सीधे देखते रोग्यशैय्या पर लेटे प्रेमचंद की यह तसवीर बेहद जीवंत है| प्रेमचंद की खुली आँखें ऐसा आभास देती हैं मानो पूरे हिंदी समाज से मुखातिब हों| 1936 के 8 अक्तूबर को महान लेखक प्रेमचंद का निधन हो गया|
प्रेमचंद की तसवीर खींचकर. एक तरह से उन क्षणों का दस्तावेजीकरण करके, अज्ञेय ने हिंदी साहित्य समाज का बहुत भला किया|
फोटोग्राफर ‘अज्ञेय‘ ने हिंदी साहित्य की बड़ी बड़ी विभूतियों और पिछली सदी के तीस के दशक से अस्सी के दशक तक के पांच दशकों में घटित हुए बहुत से हिंदी साहित्य से जुड़े सम्मेलनों और उनमें सम्मिलित होते दिग्गज लेखक, कवियों आदि की तसवीरें, देश विदेश भ्रमण के दौरान खींची तसवीरें, और प्रकृति से जुडी तसवीरें आदि खींचकर फोटोग्राफी के क्षेत्र में अपने सिद्धहस्त कलाकार होने को न केवल प्रमाणित किया बल्कि दुलर्भ दस्तावेजीकरण किया| अज्ञेय द्वारा स्थापित ट्रस्ट ‘वत्सल निधि‘ से जुड़े जीवित लोग या अज्ञेय के कार्यों पर कॉपीराईट का नियंत्रण रखने वाले लोगों को फोटोग्राफर अज्ञेय की कलाकारी को फोटो प्रदर्शनी के माध्यम से जन साधारण के सम्मुख लाना चाहिए या कम से कम अज्ञेय को समर्पित एक वेबसाईट बनवाकर उनके सभी कार्यों को वहां प्रदर्शित करना चाहिए|
जीवन भर अज्ञेय नए से नए लेखक कवि, व कलाकार व उनकी कलाओं को आगे बढाने का कार्य करते रहे| ऐसे कर्मठ, उदार, दिलदार अज्ञेय के कार्यों की झांकी जनसाधारण के समक्ष सहज ही सुलभ हो, यह एक नितांत न्यायोचित और आसानी से पूर्ण हो सकने वाली इच्छा है|