दो रास्ते …

दो बातें कभी भूलनी नहीं चाहियें

अगर तुम मुक्ति के लिए उत्सुक हो

एक है मृत्यु

और दूसरा है ईश्वर!

मृत्यु की सच्चाई :

इस संसार में हर वस्तु अपनी मृत्यु की ओर अग्रसर है|

जिसका भी आरम्भ है उसका अंत निश्चित है|

यह मनुष्य शरीर, इससे उत्पन्न सभी सम्बन्ध और अन्य सभी वस्तुएं, सभी को एक दिन मृत्यु लील जायेगी|

तब इन सबसे इतना मोह क्यों?

ऐसे शरीर के लिए इतनी साज सज्जा का क्या महत्त्व है, जो हर क्षण बिना किसी व्यवधान के मृत्यु की ओर नियत गति से बढ़ा चला जा रहा है?

मनुष्य के अन्दर सांसारिक वस्तुओं के प्रति विरक्ति इसलिए नहीं पनपती क्योंकि वह मृत्यु के बोध को भुलाए रखता है|

प्रति दिन मनुष्य मृत्यु के आवास में जा बसने की ओर बढ़ रहा है लेकिन तब भी जीवित रह गए व्यक्ति अमर होने की आकांक्षा पाले रखते हैं “ (यक्ष के प्रश्न के उत्तर में युद्धिष्ठिर के वचन)

मृत्यु का अनवरत बोध निस्संदेह विरक्ति के भाव को जगायेगा, लेकिन यह हृदय को आनन्द से नहीं भर पायेगा| संसार खाली, व्यर्थ और नष्ट होने वाला महसूस होगा| हृदय के आनंद के लिए मनुष्य के मन में ईश्वर की स्थापना आवश्यक है|

एकमात्र और सर्वश्रेष्ठ मार्ग है जीवन के हर पहलू में ईश्वर के प्रति पूर्ण सच्चा समर्पण ! (नारायण स्वामी)    

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