बहुत बड़ी गलती नहीं की क्या
प्रकृति ने ?
इंसान तो बनाया ही बनाया
साथ उसे प्रदान कर दी,
जरुरत से ज्यादा
सोचने और समझने की शक्ति!
प्रकृति बसाती जाती है
इंसान उजाड़ता जाता है,
विध्वंस का प्रयोग करता है
एक इंसान दूसरे इंसान के विरुद्ध
पेड़-पौधे और जानवर तो
अणु बम बनाते नहीं
ये सब कारनामें तो इंसान के ही हैं|
आइंस्टाइन की वैज्ञानिक मेधा का दुरुपयोग करके
जब ट्रूमन ने हिरोशिमा और नागासाकी
में विनाश फैलाने की योजना बनाई
तब उसे पता तो था
कि जापान आत्मसमर्पण के लिए तैयार था
फिर क्यों इतना बड़ा विध्वंस रचा उसने?
क्या उसके दिमाग पर शैतान ने कब्जा कर लिया था?
या उसे बाकी देशों को अपनी शक्ति दिखानी थी?
कारण जो भी रहा हो उसके बोये बीजों से
उपजी फसल धरती पर जीवन को
हमेशा के लिए संक्रमित कर गई है|
जिनके पास अपने नागरिकों को खिलाने के
लिए भोजन तक नहीं है ऐसे
देश भी एटम बम थैले में लिए घूम रहे हैं|
आत्मघाती तो इंसान सदा से ही रहा है-
वरना वह धरती पर प्रकृति की देन का ऐसा नाश न करता रहता-
ट्रूमन के कदम ने
उसे पूरी धरती को नष्ट करने का औजार देकर
भस्मासुर भी बना दिया|
देर-सबेर कोई न कोई
सनकी राजनीतिज्ञ
इस धरती को लील कर ही
अंतिम शान्ति को प्राप्त होगा|