एक दिन के लिए भी दूर मत जाओ,
क्योंकि …
क्योंकि…,
मुझे नहीं पता कि इसे कैसे कहना होगा:
एक दिन की अवधि बहुत लम्बी है मेरे लिए तुम्हारी जुदाई में व्यतीत करने के लिए,
मैं सारा दिन तुम्हारा इंतजार करता रहूंगा,
ऐसे जैसे एक सोता हुआ खाली स्टेशन करता है जब ट्रेनों को कहीं और खड़ा होने के लिए भेज दिया जाता है|
मुझे छोड़ कर मत जाओ,
एक घंटे के लिए भी दूर मत जाओ मुझसे, क्योंकि
तब व्यथा की छोटी-छोटी बूँदें एक साथ बहेंगीं,
धुआँ जो एक घर की तलाश में भटका करता है,
मेरी ओर मुड़ जायेगा
और मेरा टूटा हुआ ह्रदय उसकी जकड में घुट जायेगा|
ओह, काश कि तुम्हारा साया कभी भी समुद्र तट पर खोये नहीं,
काश तुम्हारी पलकें कभी शून्य में स्पंदन न करने पायें,
मुझे एक सेकेण्ड के लिए भी छोड़ कर मत जाना, मेरे प्रियतम!
क्योंकि उस एक क्षण में तुम इतनी दूर जा चुकी होओगी
और भ्रमित मैं, सारी पृथ्वी पर तुम्हे खोजता घूमूंगा,
यह पूछता हुआ,
“क्या तुम वापिस आओगी?”
क्या तुम मुझसे दूर चली जाओगी?
मुझे मरता हुआ छोड़कर!
Don’t Go Far Off (Pablo Neruda)
अनुवाद :- …[राकेश]