दलित पृष्ठभूमि के दो नेता जो प्रधानमंत्री बन सकते थे

भारतीय राजनीति ने पिछले 77 सालों में दो ऐसे अवसर उत्पन्न किये जब दलित पृष्ठभूमि से आने वाले बेहद गुणी और सर्वथा योग्य नेता भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे पर ऐसा हो न सका|

#गांधी जी की प्रेरणा से #कांग्रेस ब्रितानी राज के समक्ष यह प्रस्ताव रख ही सकती थी कि स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री डॉ बी आर आंबेडकर होंगे| तब शायद #जिन्ना को भी पाकिस्तान बनाने की जिद छोड़नी पड़ती| #आंबेडकर उस समय के नेताओं में सबसे ज्यादा पढ़े लिखे थे| वैश्विक ख्याति प्राप्त विद्वान थे|

वाइसरॉय #माउंटबेटन की पत्नी #एडविना_माउंटबेटन ने आंबेडकर को भेजे एक पत्र में लिखा था, “वे ‘निजी तौर पर ख़ुश’ हैं कि संविधान निर्माण की ‘देखरेख’ वे कर रहे हैं, क्योंकि वे ही ‘इकलौते प्रतिभाशाली शख़्स हैं, जो हर वर्ग और मत को एक समान न्याय दे हैं ” |

आंबेडकर अगर छूट गए तो अगला अवसर बाबू #जगजीवन_राम के रूप में देश के सामने आया|

बाबू जगजीवन_राम, भी भारत के, दलित पृष्ठभूमि से आने वाले प्रथम प्रधानमंत्री बन सकते थे| #चंद्रशेखर (पूर्व पी एम्) , कांग्रेस के युवा तुर्कों और अन्य समझदार नेताओं ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस सिन्हा का निर्णय तब की प्रधानमंत्री श्रीमति #इंदिरा_गांधी के विरोध में आने पर इंदिरा जी से निवेदन किया था कि वे कुछ समय के लिए तब के रक्षा मंत्री और तब की कांग्रेस के सबसे अनुभवी मंत्री श्री जगजीवन राम को प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंप दें| जगजीवन राम, प्रधानमत्री बनने के सर्वथा योग्य नेता थे| वे 40 के दशक में #पंडित_नेहरु की 1946 में बनी अंतरिम सरकार में भी मंत्री थे, और वे संविधान सभा के सदस्य भी बनाए गए थे| उससे पूर्व 1937 में ही वे बिहार विधानसभा में निर्वाचित हो चुके थे| उनके रक्षामंत्री रहने के काल में ही भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में पराजित करके बांग्लादेश को एक स्वतंत्र देश बनाने में पूर्वी बंगाल के वासियों की सहायता की, और उन्हें पाकिस्तानी प्रताड़ना से मुक्ति दिलवाई| इंदिरा जी ऐसा करतीं तो एक योग्य एवं अनुभवी नेता, जिसने डा. #बी_आर_अंबेडकर की भांति दलित वर्ग में जन्म पाया था , भारत का पहला दलित वर्ग में जन्मा प्रधानमंत्री बन जाता और कांग्रेस के हिस्से यह श्रेय आ जाता और देश में आपातकाल न लगाना पड़ता| पर इंदिरा जी ने ऐसा नहीं किया| और एक ऐतिहासिक भूल कांग्रेस से हो गई|

अगर देश के प्रथम पी एम का पद आंबेडकर को दिया जाता या बाद में बाबू जगजीवन राम को प्रधानमंत्री बना दिया जाता तो कांग्रेस को आज सामाजिक असमानता के लिए झंडा न उठाना पड़ता |

आज भी जीतने पर क्या कांग्रेस ऐसा कदम उठायेगी? और राहुल गांधी किसी सुयोग्य दलित प्रष्ठभूमि के कांग्रेसी नेता को देश का पी एम बनायेंगे ?

भारतीय राजनीति की अब तक की चाल ढाल को देखकर तो ऐसा ही लगता है कि ऐसा काम वामपंथ के दलों या भाजपा में ही मुमकिन है|

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