तुम आये तो रंग मिले थे
गए तो पूरी धूप गयी
शायद इसको ही कहते हैं
किस्मत के हैं रूप कई
भटकी हुयी नदी में कितनी बार बहेंगे हम|
फूल-फूल तक बिखर गए हैं
पत्ते टूट गिरे शाखों से
एक तुम्हारे बिना यहाँ पर
जैसे हों हम बिना आँखों के
फिर भी इस अंधियारे जग में हंस कर यार रहेंगे हम|
ह्रदय तुम्हारे हाथ सौंपकर
प्यार किया पागल कहलाये
तुमसे यह अनमोल भेंट भी
पाकर कभी नहीं पछताए
यहीं नहीं उस दुनिया में भी यह सौ बार कहेंगे हम|
संधि नहीं कर सके किसी से
इसलिए प्यासा यह मन है
इतने से ही क्या घबराएं
यह तो पीड़ा का बचपन है
इसे जवान ज़रा होने दो वह भी भार भी सहेंगे हम|
मिलने से पहले मालूम था
अपना मिलन नहीं होगा प्रिय
अब किस लिए कुंडली देखें
कोई जतन नहीं होगा प्रिय
कल जब तुम इस पार रहोगे तब उस पार रहेंगे हम …
{कृष्ण बिहारी}