उफ ये जागती आँखों के सपने!
आँखों में चुभते हैं किरच किरच…
अभी देखा एक ख्वाब मैंने खुली आँखों से
देखो तो ज़रा कितना गहरा जा धंसा है…
तुम्हारा दौड़ते हुए आना मुझ तक
उलझे हुए श्यामल रेशम बाल
एक लय में उठता गिरता सीना
माथे पर चुहचुहाती बूंदे पसीने की
आरक्त गालों पर शर्म से जन्मी लाली की छटा
एक दूसरे से लडती उलझती साँसे
नशे से झुकती हुयी सी आँखे
तुम्हारा आके लिपट जाना मुझसे
फिर शर्मा के कुछ और सिमट जाना मुझमे
मेरा तुम्हे कुछ चिढाना और
तुम्हारा मुक्का बनाके डराना मुझको
देखो उस मुक्के का निशान
चस्पा है अब तक यहाँ मेरे सीने पे…
उफ़ तुम्हारा मौन निमंत्रण!
पढ़ सके जिसे मेरे लरजते होंठ…
वो जुड़ना अधरों का
वो फिसलना बाहों का
वो पोर पोर चुम्बन
वो सीने का स्पंदन
वो दो दिलों का मिल के धडकना
वो मेरा नशा नशा बहकना
न तुम्हारा कुछ सुनना
न अपना कुछ कहना
गर्म होना साँसों का
और कसना बांहों का
देखो तुम्हारे निशान
यहाँ मेरे सीने पे…
सपना जो उतरा खुली आँखों में
आओ पढ़ लो उसके गहरे धंसने के निशान
यहाँ मेरे सीने पे…
अभी भी फिर रही हैं तुम्हारी
बाहें जैसे मेरे बदन पे हर ओर
पोर पोर हैं स्पंदित अभी भी
सपना किरच किरच होने पे भी…
कभी यूँ भी तो हो कि दिल चाहे और तुम आ जाओ
पीछे से आके मेरी आँखों को अपने हाथों से ढक
मुझे आनंद की यात्रा पर भेज दो मुझको…
स्पर्श तुम्हारे हाथों का कभी ख्वाब से निकल कर
हकीकत तो बने…
खुशबू तुम्हारे सीने की
एक बार तो आ बसे साँसों में…
कभी यूँ भी तो हो…
और कभी ऐसा भी हो
छुअन कांपते हाथों की सिमट जाए मुझमे
लरजते, थरथराते होंठों की तपन
रह जाये मेरे साथ तेरे बाद भी
मैं पा जाऊं वो सब जो अभी अभी खवाब में
तुमने दिया है मुझे…
कभी हो ऐसा भी…
(रजनीश)
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