दिल तो बहुत किया न कुछ कहूँ तुझे
न याद करूँ…
न पुकारूं…
न ख्वाबों में तेरी जुल्फ सवारूँ
तेरी अहम् की दीवार बहुत ऊंची है
क्यूँ अपने को उसके पार उतारूँ
क्यूँ आखिर सौंप दूँ कमान
अपने दिल को तुझ जैसे
बेहिस पत्थर दिल को
क्यूँ करूँ रातें सियाह तेरी खातिर तू बता!
बहुत दिल करता है कि न कुछ कहूँ लेकिन
ये दिल ही है जो हर लम्हा तेरी याद
में धडकता है…
रखता है दहका के मुझे
हर शाम तेरी याद में मचलता है
और फिर फिर फिसल जाता है
हाथों से…
(रजनीश)