दाहिने हाथ की उठी हथेली ;
नग्न कच्चे कुचों –
कटी के मध्य देश- –
लौह की जाँघों से
आंतरिक अरुणोदय की झलक मारता है
ओ चित्र में अंकित युवती:
तुम सुंदर हो!
मौन खड़ी भी तुम विद्रोही शक्ति हो!
(केदारनाथ अग्रवाल – ०९ अक्टूबर १९६०)
Life creates Art and Art reciprocates by refining the Life
हर कोई कला को समझना चाहता है। चिड़िया के गाये गीत को समझने की चेष्टा क्यों नहीं करते? पेंटिंग के मामले में लोगों को समझना होता है... पर क्यों?
वे लोग जो चित्रों की व्याख्या करना चाहते हैं सरासर गलती पर होते हैं।
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दाहिने हाथ की उठी हथेली ;
नग्न कच्चे कुचों –
कटी के मध्य देश- –
लौह की जाँघों से
आंतरिक अरुणोदय की झलक मारता है
ओ चित्र में अंकित युवती:
तुम सुंदर हो!
मौन खड़ी भी तुम विद्रोही शक्ति हो!
(केदारनाथ अग्रवाल – ०९ अक्टूबर १९६०)
Posted on फ़रवरी 21, 2017 at 10:02 पूर्वाह्न in कविता, चित्र | RSS feed | प्रतिक्रिया | Trackback URL
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