उदासी भरी आस
दिल के दरवाजे तक
चली आती है यूँ ही
जैसे मौत इक इक कदम कर
और कुछ और करीब आती हो…
चलो आओ तुम अब तो…
के …
अब सहा नहीं जाता…
इंतज़ार की लंबी रातों का दर्द…
बहुत दुखता है…
बहुत दुखता है…
हर शाम का तेरी यादों को रौशन करना
देहरी तकना…
फिर अँधेरे की चादर भिगोना…
बहुत दुखता है…
देह हर दम जैसे दर्द के बीज बोती है
और अपनी ही फसल के बोझ तले रोती है
आसमां की चादर हर रोज मुझ पे…
कफ़न होती है …
हर सुबह मौत मुझ पे हंसती है
हर सुबह ज़िन्दगी मुझ को रोती है…