महफ़िल में मुखौटों को आइना दिखा देता है
तमाशा बनता है दीवाना तमाशा बना देता है
किसे मिलता है लहरों से गहराई का सुराग
डूबने वालों को ही समंदर अपना पता देता है
भरे पेटों को दवाओं से भी कब आती है नींद
भूखे को तो रोटी का टुकड़ा भी सुला देता है
आग लगे घरों से तुम्हे क्या पर ये सोच लो
हवा का बदलता रुख बस्ती को जला देता है
अपने साथ पटक लेंगे आये संभाले तो कोई
अब देखना ये है कौन हमको सहारा देता है
शहर की रोशनियों के बीच गुम होने के बाद
हर अंधेरा दरवाज़ा मुझे घर का पता देता है
तजुर्बात की धुनों पर नाचती है हर जिंदगी
वक्त का चलन सबको जीना सिखा देता है
किसी को गिरा सके तो ही आगे बढ़ोगे वरना
उतावली भीड़ में कौन किसको रास्ता देता है
खुद से सामना होता है अंधेरा होने के बाद
उजाले में तो साया भी कद को बढ़ा देता है
इज्ज़त मांगे नहीं मिलती कौन नहीं जानता
पर तू तो यार माटी को सर पे बिठा देता है
तुमने धूप में ही बाल सफ़ेद किये है आलम
वक्त बच्चे को भी दुनियादारी सिखा देता है
(रफत आलम)