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सितम्बर 16, 2016

अकड़ और अश्लीलता से मुठभेड़… रघुवीर सहाय

Raghuvir Sahayकितने अकेले तुम रह सकते हो?
अपने जैसे कितनों को खोज सकते हो तुम?
अपने जैसे कितनों को बना सकते हो?


हम एक गरीब देश के रहने वाले हैं

इसलिए
हमारी मुठभेड़ हर वक्त रहती है ताकत से
देश के गरीब होने का मतलब है
अकड़ और अश्लीलता का

                                               हम पर हर वक्त हमला
(रघुवीर सहाय)

सितम्बर 15, 2016

सबसे दिली दोस्त … (कमलेश)

सबसे भले दोस्त

गायब हो जायेंगें भीड़ में |

सबसे दुखी दोस्त

झूठे पड़ जायेंगें उम्मीद में|

सबसे बड़े दोस्त

छूट जायेंगें मंजिल के पहले|

सबसे दिली दोस्त

गरीब हो जायेंगें विपत्ति में|

(कमलेश)

(साभार – समास – १४)

 

मार्च 30, 2014

वह जो है सबसे महान माँ…

सब माताएं महान होती हैं womanchildlabour

अपने बच्चों के लिए

वे नाना प्रकार के त्याग करती हैं

अपने बच्चों के लिए

वे अपने जीवन को

अपनी अभिलाषाओं को

काट-छांट कर सीमित बना देती हैं

अपने बच्चों के लिए

बहुत सी माताएं

छोड़ देती हैं

लाखों-करोड़ों की नौकरियां और व्यवसाय

अपने बच्चों के लिए

अपने तमाम शौक और जूनून की हद तक पाले गये शौक

भी छोड़ देती हैं कुछ अरसे के लिए

अपने बच्चों के लिए

जो कुछ भी आड़े आता है बच्चों के

सही ढंग से लालन पोषण में

वे उसे छोड़ देती हैं

पर सुरक्षित माहौल में

रहने वाली स्त्रियाँ

बेहतरीन माएँ होते हुए भी

उतनी महान नहीं होती

जितनी होती है एक कामगार गरीब माँ

वह स्त्री जो बांधकर

अपनी पीठ पर दूधमुयें बच्चे को

काम पर जाती है

पत्थर तोडती है

ईंटें धोती हैं

भांति भांति के परिश्रम करती है

ताकि अपने और बच्चे के लिए

जीविका कमा सके,

और यह कठोर परिश्रम उसे

रोज करना पड़ता है

अगर रहने का कुछ ठिकाना है तो

वहाँ से वह रोज सुबह निकलती है

 बच्चे को पीठ पर कपड़े से बाँध कर

ठेकेदार की चुभती निगाहों से गुजर कर

उस रोज की जीविका के लिए काम पाती है

बच्चे को कार्यस्थल के पास ही कहीं लिटा देती है

और काम पर जुट जाती है

और इस स्थल पर न उसकी सुरक्षा का कोई प्रबंध है

labour motherन उसके बच्चे की

पर इन् सब मुसीबतों से लड़ती हुयी

वह जीविकोपार्जन के लिए हाड तोड़ मेहनत करती रहती है

कुछ देर रोते बच्चे के पास जाती है तो

सुपरवाइजर से झिडकी सुनती है

चुनाव का वक्त होता है तो

देखती है पास से गुजरते वाहनों पर लदे नेताओं को

और सुनती है उनके नारों को

– वे उस जैसे गरीब लोगों के लिए बहुत कुछ करेंगे|

शायद उसे आशा भी बंधती हो

पर वह सब तो भविष्य की बातें होती है

वर्तमान में तो उसे रोज

जीने के लिए लड़ना है

इसलिए रोज सुबह वह अपने बच्चे को पीठ पर लाद

काम पर निकलती है

उसे जीना है

अपने बच्चे के लिए

और अपने बच्चे को जिंदा रखना है

खुद को जिंदा रखने के लिए|

उसे बीमार पड़ने तक की न तो सहूलियत है और न ही इजाज़त

चारों तरफ निराशा से भरे माहौल में भी

वह रोजाना कड़ी मेहनत करके जिए चली जाती है

घर-परिवार में रहने वाली तमाम माओं से

जिनके पास सहयोग होते हैं

तमाम तरह के

कहीं ज्यादा बड़े कद होते हैं ऐसी माओं के

यही हैं धरती पर सबसे महान माएँ!

…[राकेश]

 

 

 

 

अक्टूबर 9, 2011

चे-ग्वारा- आम आदमी के हालात कभी बदलेंगे क्या!

इससे पहले कि,
भूखे–नंगे,
आसमान से बगावत कर बैठते,
उलट जाते मठाधीशों के सिंहासन,
जिल्लेसुभानी बनने वालों के
ताज नोंच दिए जाते,

इससे पहले कि बराबरी का
हक मांगने के लिए
लहू पसीने की अंतिम क्रांति                                                                    
उठ खड़ी होती,

पोथियों–उपदेशों-बाजों ने
‘वह सबकी परीक्षा लेता है-
धीरज रखो बन्दों’
‘उसके घर देर है अँधेर नही’
की अफीम देकर
सुला दीं फैले हुए हाथों की फरियादें।

फिर भी कोई आवाज़ अगर
इन्साफ के लिए कराही
तुरंत ज़बान काट कर खामोश
कर दी गयी।

समय के जंजाल में फँसा
हिमालय कचरे का ढ़ेर बन गया है
मैली हो गई पवित्र गँगा भी
पर महलों-अट्टालिकाओं की आभा है वही
वही है फतवों–धर्मादेशों की चमक
वही है अभावों की चक्की में
पिसता आदमी।

न कुछ बदला है न बदलेगा
चींटी के पगों आवाज़ सुनने वाले
तेरे घर सदा देर है!

(रफत आलम)
……….

 चे-ग्वारा के संघर्ष करने के तौर तरीकों को लेकर मतभेद हो सकते हैं पर इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि बीसवीं सदी को प्रभावित करने वाली चंद बड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर की शख्सियतों में एक वे भी थे और जब तक विश्व में किसी भी तरह के कमजोर वर्ग पर शक्तिशाली वर्ग अत्याचार करता रहेगा तब तक चे-ग्वारा और उन जैसे योद्धाओं की आवश्यकता बनी रहेगा और वे जन्मते रहेंगे। उन्होने विश्वपटल पर जैसे नौजवानों को प्रभावित किया वह विचारणीय है, प्रशंसनीय है।

वे मृतप्राय व्यक्ति नहीं थे कि जैसा चल रहा था उसे वैसा ही स्वीकार करके एक समझौतापरक जीवन जीते। वे एक जीवंत आत्मा थे और उन्होने अपने समय के विश्व को बदलने का पुरजोर प्रयास किया। 9 अक्टूबर 1967 को केवल 39साल की आयु में दुनिया से कूच कर गये पर इस कम आयु वाले जीवन में भे उन्होने दुनिया को अपने कर्मो और सोच से हिला दिया था। उनकी चवालिसवीं पुण्यतिथि पर उनका स्मरण करते हुये उनके संघर्षशील व्यक्तित्व को नमन।

CHE GUEVARA

(June 14, 1928-Oct.9, 1967.)

‘If you tremble with indignation at every injustice then you are a comrade of mine.’

‘I am not a liberator. Liberators do not exist. The people liberate themselves.’

‘The life of a single human being is worth a million times more then all the property of the richest man on earth.’

‘Justice remains the tool of a few powerful interests; legal interpretations will continue to be made to suit the convenience of the oppressor powers.’

‘It’s a sad thing not to have friends, but it is even sadder not to have enemies.’

‘We must struggle every day so that this love for humanity becomes a reality.’

‘The revolution is not an apple that falls when it is ripe. You have to make it fall’.

‘In a revolution, one triumphs or dies’.

‘Cruel leaders are replaced only to have new leaders turn cruel!’

‘Better to die standing, then to live on your knees.’

‘One has to grow hard but without ever losing tenderness.’

‘I know you have come to kill me. Shoot, you are only going to kill a man.’

सितम्बर 26, 2011

शोषितों कल का उजाला तुम्हारा

ज़ुल्म की काली घटाओं के पीछे
बंधक है
न्याय-समता-समानता का सूरज।

अश्रु पीने को मजबूर हैं
प्यासे किसान,
मेहनतकश मजदूर हैं भूखे।

रौशनी जागीर बनी
खेतों की लाशों पर उग आये
महलों की।

भूख से मौत,
क़र्ज़दार किसानो की खुद्कुशी
विरासत है फैले दामनों की।

मुफलिसी के पावों में
ज़ुल्मत की ज़ंजीर हैं
अंधेरा गरीब की तकदीर है।

ऐसे क्रंदनमय माहौल में
घोर तम के पीछे से
यहाँ वहाँ कुछ रोशन किरणे,
झिलमिला उठी हैं
झोपडों के टूटे छप्परों पर।

इन्ही नन्हे प्रकाश पुंजों में
कोई सूरज बनकर जागेगा
पस्त-त्रस्त-शोषित लोगों
कल उजाला तुम्हारा होगा।

(रफत आलम)

अगस्त 10, 2011

भ्रष्टाचार की परिभाषा

भ्रष्टाचार के विरुद्ध
जंग लड़ने से पहले
स्पष्ट करना होगा
भ्रष्टाचार का अर्थ
तय करनी होगी इसकी परिभाषा
ताकि भूखा, नंगा और
खुले आसमान के नीचे
सोने वाला इन्सान कहीं
भ्रष्टाचार के अर्थ की
गिरफ्त में न आ जाए
और यदि ऐसा हुआ तो
प्रकृति-रुप सत्य पर भी
लग जाएगा प्रश्नचिन्ह
क्योंकि
भूखा, नंगा और बेघर व्यक्ति
यदि दिन रात मेहनत कर
रोटी, कपड़ा और मकान न कमा पाया
तो होगा सत्य-प्रकृति और
उसके अंश इन्सान पर
घोर अन्याय क्योंकि
रोटी, कपड़ा और मकान
इन्सान की वह कुदरती जरूरत है
जो उसे शरीर मिलने के साथ मिली है
शरीर प्रकृति का अंश है
शरीर टूटेगा तो
प्रकृति-नियम के प्रति
अन्याय होगा क्योंकि
शरीर प्रकृति है
भूखे नंगे और बेघर इन्सान को
इन्सान ही रहने दो
मेहनत करने का उसका हक
और मेहनत करके
कमाए जाने वाले
रोटी, कपड़ा और मकान को
उससे छिनने का प्रयास न करो
वर्ना वह डाका डालेगा और
चोरी भी करेगा
और तुम उसे भी
भ्रष्टाचारी कहोगे क्योंकि
तुमने अपने समर्थन में
जोड़ना है हर व्यक्ति
ताकि बड़ी भीड़ में
तुम्हे कोई आसानी से पहचान न सके
लेकिन याद रखो कि
भूखा. नंगा और बेघर आदमी
अपना शरीर तो बेच सकता है
अपनी आत्मा नहीं
कभी नहीं
वह बिके हुए शरीर होते हुए भी
तुमसे लाख दर्ज़े अच्छा है
क्योंकि उसने अभी तक भी
तुम्हारी तरह अपनी आत्मा नहीं बेचीं
और यह भूल जाओ कि
प्रकृति नियम
तुम्हारी भ्रष्टाचारी के रुप में
पहचान करने में असमर्थ होंगे
प्रकृति में
भूख और वासना का स्वरुप
स्वतः निर्धारित है
और तुम्हारा निर्दयी अन्त
तुम्हारी अपनी ही वासना से होगा
सत्य हमेशा सत्य ही रहेगा
क्योंकि भूख सत्य है
वासना नहीं
और तुम आज भी
हारे हुए हो
और कल भी
क्योंकि तुम वासना यानि
असत्य के रास्ते पर हो
और असत्य की हमेशा
हार होती है और
सत्य की हमेशा जीत !

(अश्विनी रमेश)

मार्च 4, 2011

अरबपतियों की शादी

ढ़ाई सौ करोड़ की शादी
आज बासी खबर हो गई है
कल सब भूल जायेंगे इसे
मजबूर गरीबी जहाँ रोज आत्महत्या कर रही हो
इससे अधिक क्या हो सकता था?

एक निष्ठुर रईस की दौलत का तमाशा
ढ़ाई लाख कुटीर उद्योग
सैंकड़ों गाँवों में खुल सकते थे
इस खजाने से
अनगिनत किसान दोबारा जिंदगी पा लेते
बीजों से भर जाते खेतों के भूखे पेट
सदा को अमर हो जाती वह बेटी
जिसकी मांग के सिंदूरी उजाले से
मुस्कान भर सकती थी
करोड़ों कन्या पाठशालाओं में।

न हुआ यह और होता भी कैसे
हम कफनचोर लोग
ताबूतों की दलाली के माहिर
घोटालों के राजा शान से जीते हैं
सोती हुई फुटपाथों को रोंदने वाले
रातों रात
झुग्गियों को जिंदा दफन कर
महल तामीर कर रहे हैं।

ऐसे संवेदनहीन माहौल में
बेमानी है
किसी की खुशी का गिला करना
बहुत मुबारक हो ये शादी
जो कि अब
गए गुज़रे एक समारोह के सिवा
कुछ भी नहीं।

(रफत आलम)

इसी मुद्दे पर देखें एक प्रोग्राम

सितम्बर 17, 2010

गरीब कब पढ़ेगा शुक्राने की नमाज़

चाह थी ईद का जोड़ा तेरा लाऊंगा
लौट कर नमाज़ से तुझे गले लगाउँगा
मेहँदी रचे हाथ चूमूँगा काजल में डूब जाउँगा|


आह! मुन्ना चार दिन से बीमार पड़ा है
डाक्टर रोज सौ की दवा लिख रहा है
शर्मसार हूँ के जेब में अब बचा क्या है|


वो जो पुराना गुलाबी जोड़ा है पहन लेना
तू उसमे मुझे बहुत अच्छी लगती है
खिलता है तेरे बदन पर गुलाबी रंग खूब
मुझे तो प्यारी तू हरहाल परी लगती है|


देख पानी आँखों का काजल ना उतार पाए
ऐसा ना हो मरमरी गाल काला पड़ जाये|


मेरी जान मुफलिस के ख्वाब की ताबीर है यही
ईद के दिन भी पोशाक नई मय्यसर नहीं |

(रफत आलम)