सब माताएं महान होती हैं
अपने बच्चों के लिए
वे नाना प्रकार के त्याग करती हैं
अपने बच्चों के लिए
वे अपने जीवन को
अपनी अभिलाषाओं को
काट-छांट कर सीमित बना देती हैं
अपने बच्चों के लिए
बहुत सी माताएं
छोड़ देती हैं
लाखों-करोड़ों की नौकरियां और व्यवसाय
अपने बच्चों के लिए
अपने तमाम शौक और जूनून की हद तक पाले गये शौक
भी छोड़ देती हैं कुछ अरसे के लिए
अपने बच्चों के लिए
जो कुछ भी आड़े आता है बच्चों के
सही ढंग से लालन पोषण में
वे उसे छोड़ देती हैं
पर सुरक्षित माहौल में
रहने वाली स्त्रियाँ
बेहतरीन माएँ होते हुए भी
उतनी महान नहीं होती
जितनी होती है एक कामगार गरीब माँ
वह स्त्री जो बांधकर
अपनी पीठ पर दूधमुयें बच्चे को
काम पर जाती है
पत्थर तोडती है
ईंटें धोती हैं
भांति भांति के परिश्रम करती है
ताकि अपने और बच्चे के लिए
जीविका कमा सके,
और यह कठोर परिश्रम उसे
रोज करना पड़ता है
अगर रहने का कुछ ठिकाना है तो
वहाँ से वह रोज सुबह निकलती है
बच्चे को पीठ पर कपड़े से बाँध कर
ठेकेदार की चुभती निगाहों से गुजर कर
उस रोज की जीविका के लिए काम पाती है
बच्चे को कार्यस्थल के पास ही कहीं लिटा देती है
और काम पर जुट जाती है
और इस स्थल पर न उसकी सुरक्षा का कोई प्रबंध है
न उसके बच्चे की
पर इन् सब मुसीबतों से लड़ती हुयी
वह जीविकोपार्जन के लिए हाड तोड़ मेहनत करती रहती है
कुछ देर रोते बच्चे के पास जाती है तो
सुपरवाइजर से झिडकी सुनती है
चुनाव का वक्त होता है तो
देखती है पास से गुजरते वाहनों पर लदे नेताओं को
और सुनती है उनके नारों को
– वे उस जैसे गरीब लोगों के लिए बहुत कुछ करेंगे|
शायद उसे आशा भी बंधती हो
पर वह सब तो भविष्य की बातें होती है
वर्तमान में तो उसे रोज
जीने के लिए लड़ना है
इसलिए रोज सुबह वह अपने बच्चे को पीठ पर लाद
काम पर निकलती है
उसे जीना है
अपने बच्चे के लिए
और अपने बच्चे को जिंदा रखना है
खुद को जिंदा रखने के लिए|
उसे बीमार पड़ने तक की न तो सहूलियत है और न ही इजाज़त
चारों तरफ निराशा से भरे माहौल में भी
वह रोजाना कड़ी मेहनत करके जिए चली जाती है
घर-परिवार में रहने वाली तमाम माओं से
जिनके पास सहयोग होते हैं
तमाम तरह के
कहीं ज्यादा बड़े कद होते हैं ऐसी माओं के
यही हैं धरती पर सबसे महान माएँ!
…[राकेश]
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