पात्र : शबाना आजमी, जावेद अख्तर, और हिन्दी फिल्म जगत की नामचीन हस्तियाँ
अवसर : शबाना आजमी का साठवां जन्मदिन
शबाना आजमी – भारत के सबसे बेहतरीन अदाकारों में से एक।
शबाना आजमी – साम्यवादी और शायर मरहूम कैफ़ी आजमी की सुपुत्री।
शबाना आजमी – अस्सी के दशक में झोंपड़ पट्टी में रहने वालों के अधिकारों के लिये भूख-हड़ताल पर बैठने वाली सिनेतारिका कम एक्टीविस्ट
शबाना आजमी – हिन्दी फिल्मों के मशहूर पटकथा लेखक और गीतकार जावेद अख्तर की पत्नी, जो बकौल जावेद साहब, उनकी महबूबा भी हैं।
शबाना आजमी – जो किसी भी नारी पात्र को तभी निभाने के लिये तैयार होती हैं जब वह पात्र प्रोग्रेसिव हो।
शबाना आजमी – जो भारत के किसी भी मुद्दे पर हद से ज्यादा संवेदनशील बन कर जब तक उनके गले की नसें थक न जायें तब तक बोलती रहती हैं।
और जावेद अख्तर साहब के तो कहने ही क्या हैं। कितनी ही ब्लॉकबस्टर फिल्मों को उन्होने अपने दहकते शोलों जैसे कथानक और आग उगलते संवादों की सहायता से ज्वलनशील प्रकृति प्रदान की है और जिन्हे देखकर दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाया करते हैं। वास्तविक जीवन में उन्होने अपनी छवि एक धर्म-निरपेक्ष और धार्मिक असहिष्णुता के प्रति कठोर और संवेदनशील लेखक और शायर की बनायी है।
उन्हे करीब से जानने वाले हिन्दी फिल्म उद्योग के लोग उनके सेंस ऑफ ह्यूमर की तारीफ करते नहीं थकते हैं।
भारत में मज़ाक में कहा जाता है कि फलां फलां व्यक्ति सठिया गया है। शबाना आजमी साठ की क्या हुयीं उनसे कई बरस पहले ही साठ के आँकड़े को पार कर चुके उनके पति, सांसद जावेद अख्तर ने सूबूत दे दिया कि किसी भी उम्र के लोग मूर्खतापूर्ण कार्य कर सकते हैं।
जावेद जी ने शबाना जी के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर एक विशिष्ट किस्म का केक बनवाने का आर्डर दिया। केक में ऐसा क्या खास था?
केक को एक स्लम के एरियल व्यू की साज सज्जा से सुशोभित किया गया था। किसी भी गरीब स्लम की विवशता भरी विशेषतायें उस केक की शोभा बढ़ाने के लिये उपयोग में लायी गयी थीं।
स्लम के लोग विवश हैं गन्दगी में जीवन व्यतीत करने के लिये परन्तु शबाना-जावेद की जोड़ी ने दर्शा दिया कि वे गरीबों और उनकी गरीबी के प्रति वास्तव में कितने संवेदनशील हैं।
दोनों लोग कलाकार हैं और यही दुख की बात है कि संवेदना के स्तर पर जीने वाले कलाकार ऐसी असंवेदनशील मूर्खतापूर्ण गलती कर सकते हैं।
भारत की माननीय राष्ट्रपति महोदया ने श्री जावेद अख्तर को देश की संसद के उच्च सदन राज्य सभा में एक सांसद के रुप में मनोनीत किया हुआ है। जावेद साहब की मति को क्या हो गया था?
ऐसी तो आशा ही करनी बहुत बड़ी बेवकूफी होगी कि आज के दौर की भारतीय संसद के सांसद इतने संवेदनशील हो सकते हैं कि वे संसद से इस्तीफा दे दें ऐसी असंवेदना प्रकट करने के लिये।
इससे पहले कि किसी का दिमाग शबाना और जावेद की हरकत में सियासी दलों में बँटी राजनीति ढ़ँढ़े, यह बताना अप्रासंगिक न होगा कि शबाना आजमी के जन्म दिन की पार्टी में लगभग हरेक राजनीतिक दल से जुड़े लोग मौजूद थे।
भारत के हर मुद्दे पर गला खँखार कर लोगों को खामोश करते, भाषण देते, हमेशा बड़े बड़े बोल बोलने वाले शत्रुघ्न सिन्हा शायद अभी तक गरारे ही कर रहे हैं ताकि अगर इस मुद्दे पर राजनीति जोर पकड़ ही जाये तो किसी तरह अपनी जान बचाने को कुछ बोल सकें।
भारत के सबसे अच्छे अभिनेताओं में सिरमौर कुछ अभिनेताओं में शामिल माननीय नसीरुद्दीन शाह, जिनके पास हिन्दी सिनेमा के लगभग हर अभिनेता के खिलाफ व्यंग्य के तीर हमेशा मौजूद रहते हैं, अभी कुछ कह नहीं पाये हैं। शायद वे कुछ कह भी नहीं पायेंगे।
पार्टी में शामिल किसी भी फिल्मी व्यक्ति से किसी भी विवाद उत्पन्न करने वाले मुद्दे पर कुछ कहने की उम्मीद करना भी ऐसा होगा जैसे कि ये उम्मीद करना कि कॉमनवेल्थ गेम्स की तैयारी में भ्रष्टाचार के मामले में एक भी पैसे का हेरफेर नहीं हुआ है।
जनता की बेवकूफी इस बात से जाहिर होगी कि लोग अभी भी इन सितारों को पूजे चले जायेंगे।
भारत कब एक सभ्य देश बनेगा और कब सभ्य बनेंगे इसके नागरिक ताकि वे दूसरों की भावनाओं पर घात न करें।
ऐसे हालात पर सिर्फ दुखी हुआ जा सकता है।
गलती सभी से होती है पर जावेद अख्तर इसे गलती न मानकर इसे उनके द्वारा शबाना आजमी के लिये किया गया एक मज़ाक ही मान रहे हैं। उनके मुताबिक शबाना अपने हर मामले को इतनी गम्भीरता से लेती हैं कि उन्हे मज़ाक का अर्थ समझाने के लिये ऐसा केक बनाने का विचार उनके दिमाग में आया था।
इस काम के लिये तो जावेद अख्तर अपने गरीबी और दिक्कतों से भरे बचपन की यादों से भरा हुआ केक बनवा सकते थे। ऐसा केक उनकी संवेदशीलता की जाँच भी कर लेता।
अंकुर, पार और धारावी जैसी फिल्मों में गरीब स्त्री की भूमिकायें सशक्त रुप से निभाने वाली शबाना आजमी ने सिद्ध कर दिया है कि वे एक प्रशिक्षित अभिनेत्री मात्र हैं और उनके द्वारा गरीबों के अधिकारों के लिये दिये गये धरने जैसे प्रयास भी मंचीय अभिनय के ही विस्तृत रुप थे।
जावेद साहब ने भी अपना सेंस ऑफ ह्यूमर दिखा दिया है कि यह औरों का मज़ाक बनाने पर ही निर्भर करता है।
अपने जन्मदिवस पर अतिथियों के सामने “मुन्नी बदनाम हुयी” गीत पर नृत्य करने वाली शबाना आजमी को गुमान भी न रहा होगा कि एक गलती उन्हे गाने पर विवश कर देगी।
मुन्नी बदनाम हुयी डार्लिंग तेरे लिये
शबाना बदनाम हुयी जावेद तेरे लिये
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