चाहे घड़ी विदा की आये
दुनिया ठुकुरसुहाती गाये
मेरा धैर्य नहीं टूटेगा
मैं खुद को न ढहने दूंगा
आंसू एक न बहने दूंगा…
युगों युगों से रोज संजोया
अंतर्मन ने खूब भिगोया
फिर भी कसम यही खाई है
मैं इनको न बहने दूंगा
आंसू एक न बहने दूंगा…
दुनिया ने खेती की धन की
मेरी धरती यही नयन की
इसमें फसल उगाई है
जो वह न सबको चरने दूंगा
आंसू एक न बहने दूंगा…
मुझे जरुरत नहीं दया की
मुझमे मूरत है ममता की
तुम जो चाहो हाथ धरो
तो यह न तुमको करने दूंगा
आंसू एक न बहने दूंगा…
{कृष्ण बिहारी}
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