जीवन प्रश्न भी और उत्तर भी

किसी दूसरे को
जानने के लिए
पहले स्वयं को
जानना जरूरी है
स्वयं से प्रश्न करना
और
स्वयं ही उसका उत्तर खोजना
इसलिए जरूरी है कि
हर व्यक्ति को
अपने जीवन का रास्ता
स्वयं ही तय करना है
तुम स्वयं ही गुरु हो
और शिष्य भी स्वयं ही हो
यह भूल जाओ कि
तुम कुछ जानते हो
स्वयं से प्रश्न करो कि
जीवन क्या है और क्योँ है?
इस प्रश्न का उत्तर
तुम्हारा मन, बुद्धि और तर्क नहीं दे सकते
इसका उत्तर जीवन की उस
बंद किताब की तरह है
जिसको तुम यदि
खोलने की चेष्टा ही न करो
तो यह तुम्हारी अलमारी के
एक कोने में पड़ी
व्यर्थ सी चीज़ रह जायेगी
तुम्हारी जीवन की किताब के भी
अनेक पन्ने हैं
जिनको तुम्हे
पढ़ने के लिए
जानने के लिए
खोलने का कष्ट
करना ही होगा
जीवन की इस किताब का एक पन्ना
तुम्हारी जीवनयात्रा का
एक कदम मात्र है
तुम्हे जीवनयात्रा
एक एक कदम से
तय करनी है
यदि तुम बिना देखे छलांग लगाओगे तो
तुम्हारा गिरना तय है
इस जीवनयात्रा का कोई शॉर्ट-कट नहीं
न कोई गुरु है
जो तुम्हे
यह घुट्टी पिला दे कि
तुम्हे कहाँ से और
कैसे चलना है
तुम्हे तो
स्वयं ही चलना है
और वह भी कदम कदम पैदल
तभी तो तुम जान पाओगे कि
यह यात्रा कितनी कष्टदायी
और कितनी सुखदायी है
इस यात्रा की मंज़िल और यात्रा
दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं
और तभी यह जीवनयात्रा
‘जीवन’ और ‘यात्रा’
एक दूसरे में
ऐसे समाए हुए हैं
जैसे
जीवन एक प्रश्न
और जीवन ही उसका उत्तर
एक दूसरे में
समाए हुए हैं!

(अश्विनी रमेश)

13 Responses to “जीवन प्रश्न भी और उत्तर भी”

  1. बहुत गूढ़ ज्ञान है इस कविता में!

  2. “जीवन एक प्रश्न
    और जीवन ही उसका उत्तर..”
    सुंदर!

  3. सुनील जी,
    टिप्पणी हेतु धयवाद,! आपको अहसास है क्योंकि–जिन खोजा तिन पाहिया–!

  4. Hindi SMS टिपण्णी हेतु धन्यवाद !

  5. जरूरी है
    स्वयं से प्रश्न करना
    और
    स्वयं ही उसका उत्तर खोजना
    बिलकुल सही सन्देश देती रचना के लिये बधाई।

  6. पथ प्रदर्शक की ओर अग्रसर करती कविता है |

  7. कपिला जी,
    बढ़िया टिप्पणी हेतु धन्यवाद ! आपने ठीक कहा कविता में सन्देश हो तो अच्छी लगती है वर्ना अखबार और कविता में भेद नहीं रह जाएगा !

  8. नेगी जी, टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद !आप ब्लॉग तक तो पहुंचे वर्ना फेसबुक पर लोग अपना ज्यादातर अवांछित समय लगा रहे हैं !

  9. गजब का विश्लेषण करती हुई कविता

  10. विवेक जी, टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद !


  11. यह मात्र शब्द नहीं हैं पंडित जी,
    आपका जिया हुआ सत्य है
    जो आपके शब्दों से हुबहू मिलता है
    आपकी कवितायें आपके जीवन की REPLICA हैं
    इस सच्चाई को वो लोग जानते हैं
    जो आपके सानिध्य में रहे हैं…

  12. सुन्दर टिपण्णी हेतु धन्यवाद ! सही कहा तुमने सत्य जीने से ही शब्दों में स्वाभाविक जान आती है !

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