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फ़रवरी 16, 2017

जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे…

छोटी मगर गहरे भाव और अर्थ अपने में समाहित की हुयी कविता का उदाहरण देखना हो तो प्रसिद्ध लेखक विनोद कुमार शुक्ल की कविता “जो मेरे घर नहीं आयेंगें” तुरंत सामने आ जाती है|

जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे

मैं उनसे मिलने

उनके पास चला जाऊँगा

एक उफनती नदी कभी नहीं आयेगी मेरे घर

नदी जैसे लोगों  से मिलने

नदी किनारे जाऊँगा

कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा

पहाड़, टीले, चट्टान, तालाब

असंख्य पेड़ खेत

कभी नहीं आएँगे मेरे घर

खेत खलिहानों जैसे लोगों से मिलने

गाँव – गाँव, जंगल- गलियाँ जाऊँगा|

जो लगातार काम में लगे हैं

मैं फुरसत से नहीं

उनसे एक जरूरी काम की तरह

मिलता रहूँगा

इसे मैं अकेली आख़िरी इच्छा की तरह

सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा|

(विनोद कुमार शुक्ल)

अप्रैल 20, 2013

दिल्ली है सांडों की, बलात्कारियों की!

ये दिल्ली है!
भारत देश की राजधानी|

यहाँ रहते हैं
प्रधानमंत्री से लेकर तमाम केन्द्रीय मंत्री,
तमाम बड़े बड़े नेता
यहाँ रहते हैं देश के प्रथम नागरिक|

कहा जाता रहा है –
– दिल्ली है दिल वालों की –
ज़रा सामने तो आओ और कहो कि –
दिल्ली है दिल वालों की?

नहीं हुजूर!
दिल्ली दिल वालों की नहीं हो सकती!
दिल्ली तो है अब सांडों की!
कामुक जानवरों की!
जो देश के कोने कोने
से यहाँ आकर,
अपने विकृत दिमाग को लाकर
नारी से बलात्कार करने में मशगूल हैं|

ये बलात्कारी सांड
अपने मनोविज्ञान में
किसी नारी से कोई भेद भाव नहीं करते
इनके लिए
स्त्री चाहे एक साल से छोटी शिशु हो
या साठ से ऊपर की वृद्धा
सब बलात्कार के योग्य हैं|

ये मानसिक रोगी
हरेक उम्र की,
हरेक रंग रूप की,
नारी को रौंदने का
बीडा उठाये
घूम रहे हैं
दिल्ली की गलियों में
दिल्ली के कूचों में
ये वही गलियाँ हैं
जिनमें से किन्ही में
ग़ालिब जैसी आत्माएं घूमा करती थीं
और आज कामुक सांड घुमा करते हैं|

ये जानवर घरों में,
बसों में,
कारों में
लगभग हरेक जगह
नारी को शिकार बनाते
घूम रहे हैं
और जिन्हें सडकों पर
नारी को सुरक्षा देने के लिए
घूमना चाहिए
वे वर्दी वाले
नारियों पर ही लात-घूसे-लाठी और गालियों
की बौछार कर रहे हैं|

हवा में हर तरफ
दहशत है
बच्चियों की चीख पुकार है
ये नेता, सत्ता और विपक्ष के,
ये हाकिम,
ये वर्दी वाले,
ये सोते कैसे हैं?
ये किस चक्की का पिसा
आटा खाते हैं
जो इन्हें नींद आ जाती है?

इनमें कुछ ऐसे भी हैं
जो ऐसे हर मामले के बाद
संवाद बोलने लगते हैं
कि वे पिता हैं
दो-दो, तीन-तीन बेटियों के
अतः वे स्त्री के दुख को समझते हैं भली भांति|

क़ानून उनके हाथ में है
नये क़ानून बनाना उनके हाथ में है
क़ानून का पालन करवाना उनकी जिम्मेदारी है
पर दिल्ली है कि
भरी पडी है बलात्कारियों से|

कुछ बलात्कारी नेता हैं
कुछ बलात्कारी नेताओं के बेटे, या नाते रिश्तेदार
कुछ बड़े अफसरों के बेटे
कुछ छोटे अफसरों के बेटे
कुछ बिना लाग लपेट के
सीधे सीधे गुंडे हैं
या गुंडों के बेटे हैं
ये सब बलात्कारी
बहुत शक्तिशाली हैं
इन्हें किसी भी हालत में बलात्कार करना ही करना है
क़ानून इनके नौकर की तरह काम करता है|

अगर इन सबके रहते
दिल्ली अब भी दिल वालों की है
तो नारी क्या करे?
दुनिया तो छोड़ नहीं सकती
तो क्या दिल्ली छोड़ दे?