इतना ज्यादा भरा हुआ हूँ
लगता है मैं मरा हुआ हूँ
कोशिश करके धनवन्तरी से
तुम मुझको दिखला दो भाई !
थोड़ी और पिला दो भाई!
अगर इसे मैं पी जाउंगा
शायद मैं कुछ जी जाउंगा
जीवन की अंतिम साँसों को
कुछ तो और जिला दो भाई!
थोड़ी और पिला दो भाई!
खामोशी का टुकड़ा बनकर
एक उदासी बसी है भीतर
सोई हुई झील के जल को
पत्थर मार हिला दो भाई!
थोड़ी और पिला दो भाई!
मांग रहा हूँ मैं आशा से
देह और मन की भाषा से
अमृत की गागर से मुझको
एक तो घूँट पिला दो भाई!
थोड़ी और पिला दो भाई!
मुझे छोड़ जो चला गया है
खुद से ही वह छला गया है
है तो मेरा जानी दुश्मन
पर इक बार मिला दो भाई!
थोड़ी और पिला दो भाई!
{कृष्ण बिहारी}
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