‘सर, मुझे लगता है वह आदमी अभी जिंदा होगा’| मेजर शैलेन्द्र रावत ने कहा|
‘रावत, तुम ऐसा दावे के साथ कैसे कह सकते हो’? कर्नल सिंह ने कहा|
‘सर, मैं एक गढवाली हूँ| मैंने हिमालय में बहुत सी ऐसी गुफाएं देखी हैं जहां योगी और साधू अभी भी साधना किया करते हैं| यह गुफा भी प्राकृतिक गुफा नहीं थी वरन मानव निर्मित थी| यह अवश्य ही साधुओं और तपस्वियों की किसी परम्परा दवारा विकसित गुफा है जो अभी भी साधना के लिए उपयोग में ली जाती है| संन्यासी सदियों से ऐसी गुफाओं का इस्तेमाल करते रहे हैं| हजारों हजार तपस्वियों की साधना से ऐसी गुफाएं ऊर्जा से लबरेज रहती हैं| साधना के इच्छुक साधुओं और योगियों को यहाँ भेजा जाता है ताकि वे एकांत में साधना कर सकें| यदि वह आदमी इस गुफा में कुछ दिन रुका तो ऐसा नहीं हो सकता कि जिस परम्परा की यह गुफा है, उस परम्परा के संन्यासियों को इस बात का पता न चला हो| हो न हो संन्यासी उस व्यक्ति को अपने साथ ले गये होंगे और वह सांसारिक बंधनों से मुक्त्त होकर स्वयं भी संन्यासी बन गया होगा|’
‘शैलेन्द्र, कैसे तुम इतना ठोस दावा कर सकते हो?|
‘सर, मैंने गुफा में धूप बत्ती की राख देखी और लोबान की सुगंध को महसूस किया और मुझे पूरा विश्वास है कि वह आदमी तो अपने साथ धूप लेकर गया नहीं होगा| संन्यासी धूप का प्रयोग करते हैं गुफा के अंदर रोशनी के लिए और यह अंदर की वायु को भी शुद्ध करती है| सूबेदार दीक्षित ने इन् बातों पर ध्यान नहीं दिया किन्तु मैंने ऐसे छोटे छोटे संकेतों पर ध्यान केंद्रित किया| केवल एक बात मेरी समझ में नहीं आई और जो मुझे उसी समय से परेशान कर रहे एही जबसे मैंने गुफा के अंदर पैर रखा था| मेजर रावत ने खोये खोये से स्वर में कहा|
सब लोग शांत होकर मेजर रावत की बात सुन रहे थे, उन सभी को अपनी ओर देखते हुए पाकर, मेजर ने कहा,”सर, गुफा के गीले पथरीले फर्श पर मैंने दो जोड़ी पांवों के निशान देखे| हालांकि गुफा के बाहर पैरों के बहुत सारे निशान थे, पर अंदर केवल दो ही जोड़ी थे| और एक जोड़ी पाँव के निशान असामान्य थे और आकार में काफी बड़े थे| इतने बड़े पैरों के निशान सामान्य मनुष्य के नहीं हो सकते”|
‘तो, तुम कहना क्या चाहते हो?”
‘पता नहीं सर, मैं खुद इस गुत्थी को नहीं सुलझा पा रहा हूँ’|
‘क्या वे किसी जानवर के पंजों के निशान थे?’
‘नहीं सर, जानवर के पंजे के निशान तो बिल्कुल भी नहीं थे| थे इंसानी पाँव के निशान ही, परन्तु बहुत ही बड़े पैरों के निशान थे, और निशान की स्पष्ट छाप बता रही थी कि वे किसी बहुत भारी मनुष्य के पैरों के निशान थे’|
‘ह्म्म्म’|
कुछ देर की खामोशी के बाद जवान मधुकर श्रेष्ठ ने आगे बढ़कर हिचक के साथ कहा,”साहब अनुमति हो तो मैं भी कुछ कहूँ?”
‘जरुर’|
‘साहब, उत्तराखंड और नेपाल में ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी अमर हैं और वे अभी तक हिमालय में विचरण करते हैं| सर, ऐसा कहा जाता है कि जो भी उन्हें देख लेता है वह या तो पागल हो जाता है या मर जाता है| कृपया इसे एक बुढाते व्यक्ति का अंध-विश्वास मान कर नकारिये मत| मुझे विश्वास है कि वे असामान्य पांवों के निशान अवश्य ही हनुमान जी के थे| आज के दौर के मनुष्यों के पांवों के निशान वैसे हो ही नहीं सकते|”
‘क्या ऊलजलूल बात कर रहे हो?’
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‘आह पवित्र वेदों के ज्ञान को मौखिक रूप से अगली पीढ़ी को सौंपने के लिए श्रुति की परम्परा को सुरक्षित करने के लिए एक और शिष्य! लेकिन परिश्रमी मनुष्यों के कठोर परिश्रम को पार्श्व में ढकेल कर देवताओं और उनसे सम्बंधित सर्वथा कर्महीन राजाओं की झूठी महानता का वर्णन क्यों? कथाओं में राजाओं का संबंध ईश्वर से स्थापित करके उन्हें आम जनता की निगाहों में अजेय और अमर बनाकर राजवंशों को अमरता प्रदान करने का षड्यंत्र कब तक चलेगा?’ विश्वामित्र ने क्षुब्ध होकर सोचा|
विश्वामित्र ने धीमे स्वर में पूछा,”चारुदत्त, तुमने यह कहानी कहाँ सुनी?”
“भगवन, ब्रह्म-ऋषि वशिष्ठ के गुरुकुल में”|
विश्वामित्र अपनी निराशा छिपा नहीं पाए और सयंत लेकिन दबे हुए क्रोधित स्वर में बोले,” चारुदत्त, मुझे नहीं पता, वहाँ क्या पढ़ाया जाता है| राज्यों के कोष से चलने वाली शिक्षण संस्थाएं इतिहास का पुनर्लेखन एवं पुनर्पाठ करती हैं क्योंकि यह उनके आश्रयदाता के हितों के अनुकूल होता है| भगीरथ की असली कहानी क्या है, कोई नहीं जनता लेकिन जिसमें मैं विश्वास रखता हूँ , मैं तुम लोगों को वह सुनाता हूँ”|
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“रानी सुमित्रा के दो जुड़वा बेटे हैं, लक्ष्मण और शत्रुघ्न| लक्ष्मण अपनी माँ की तरह है, लाग-लपट से दूर, सीधे सच्चे बोंल बोलने वाला| शत्रुघ्न को राजमहल की ऐश्वर्यपूर्ण जीवन शैली पसंद है पर लक्ष्मण को महल से बाहर का जीवन भाता है| वह तीव्र बुद्धि वाला मेहंताकश इंसान है| अपनी माँ की तरह उसे भी राजा दशरथ की महिलाओं के प्रति कमजोरी, राजा की चापलूसों से घिरे रहने की आदत, और सबसे छोटी रानी कैकेयी के सामने घुटने टेक कर रहने की प्रवृति सख्त नापसंद है| लक्ष्मण के पास सूचना एकत्रित करने का तंत्र विकसित करने की विलक्षण प्रतिभा है| राजसी सेवकों में लक्ष्मण बेहद लोकप्रिय है और वे उसके प्रति बेहद निष्ठावान हैं| एक बार मैंने लक्ष्मण से पूछा कि वे कैसे सेवकों से एकदम सही सूचना निकलवा पाने में सफल रहते हैं, सेवक उनको क्यों इतना पसंद करते हैं ?”|
विनम्र लक्ष्मण ने हँस कर उत्तर दिया,” शायद वे महसूस करते हैं कि मैं उनमें से एक हूँ”|
“मैंने सुना है राम कैकेयी को पसंद नहीं करते”| विशालक्ष ने अँधेरे में तीर छोड़ा|
धरमरुचि ने उसकी ओर ऐसे देखा मानों अनुमान लगा रहा हो कि यह प्रश्न अज्ञानता का फल है या मूर्खता का|
‘नहीं, ऐसा नहीं है| लक्ष्मण से उलट, राम के कैकेयी के साथ अच्छे संबंध हैं| कैकेयी के शुरुआती मानसिक द्वंद को छोड़कर, वे आसानी से राम के ह्रदय में प्रवेश कर गयीं| कैकेयी बेहद सुंदर थीं और उनकी उम्र भी बहुत नहीं थी, राम से हो सकता है छह सात साल ही बड़ी हों, मुझे निश्चित नहीं पता”|
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‘मुनिवर, इसमें क्या हानि है अगर किसी ने पुराना और व्यर्थ पड़ा धनुष तोड़ दिया’? लक्ष्मण ने लापरवाह अंदाज़ में कहा|
क्रोध से उबल कर परशुराम ने अपने विशाल फरसे से वार किया किन्तु लक्ष्मण ने उतनी ही शीघ्रता से फरसे के वार से अपना बचाव कर लिया|
यह सब देख, विश्वामित्र ने आगे बढ़कर परशुराम को चेताया|
‘भार्गव, यह युद्ध स्थल नहीं है| यह राज दरबार है| कृपया इसकी मर्यादा का सम्मान करें| एक बालक के ऊपर फरसे से वार करना आपको शोभा नहीं देता’|
‘पितामह, यदि परम्परा का सम्मान नहीं होगा तो मेरा फरसा हर व्यक्ति को समुचित उत्तर देगा चाहे वह राजा जनक हो या दशरथ का यह युवा पुत्र| आप कृपया मेरे मामले में न पड़ें’|
विश्वामित्र ने परशुराम को शांत करके समझाने का प्रयत्न किया|
‘राम, आपने यहाँ आने का कष्ट किया| मैं आपके गुस्से को समझ पाने में असमर्थ हूँ| आप एक पुराने धनुष की तुलना परम्परा तोड़ने से कर रहे हैं| क्यों? कृपया इस आयोजन की मूल भावना को समझने का प्रयत्न करें| मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप अपने फरसे का उपयोग धर्म की रक्षा के लिए करें’|
‘कौशिक, जिस किसी ने शिव के महान पिनाकी का अपमान किया है, मैं उसे नहीं छोडूंगा| प्रतीकों की अपनी गरिमा होती है| अगर आप मेरे दुश्मनों के साथ खड़े होंगें तो मैं भूल जाउंगा कि आप मेरे पितामह हैं’|
‘भार्गव आपके दुश्मन कौन हैं? राजर्षि जनक या राम, जिसने कि राक्षसों का संहार किया है कमजोर लोगों की सहायता करने के लिए? ऐसा क्यों है कि रावण जैसे आतंकवादी आपके दुश्मन नहीं हैं?’|
‘कौशिक मेरा ध्यान बंटाने की चेष्टा मत कीजिये| मैं रावण को अपना दुश्मन क्यों मानूं?’
‘क्यों नहीं? आपके लिए शिव भक्ति ज्यादा महत्वपूर्ण है, मासूमों और निर्दोषों के हत्यारों को सजा देने से| क्षमा कीजिये परन्तु आप छिलके की रक्षा कर रहे हैं और फल को सड़ने दे रहे हैं!’
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रात्री में लक्ष्मण ने राम से पूछा,”हनुमान औरों से अलग कैसे हैं, विशेषकर अंगद से? क्या किसी साधारण मानव दवारा ऐसा चमत्कारिक कर्म करना संभव है”?
‘जब एक साधारण मनुष्य चमत्कार करता है तभी वह महान बनता है| लक्ष्मण, हमारा दृष्टिकोण हमें अलग बनाता है| दृष्टिकोण ही हमें प्रेरित करता है, जोखिम उठाने के लिए तैयार करता है, और हमारे निश्चय को दृढ बनाकर, हमें प्रतिबद्ध बनाता है ताकि हम अपने धर्म को जी सकें, अपना कर्म को पूर्णता प्रदान कर सकें|’
‘अंगद और अन्यों ने क्यों समुद्र पार करने से इंकार कर दिया?’ लक्ष्मण ने पूछा|
‘केवल हनुमान ने असफल होने के भय को किनारे करके आगे बढ़ने का जोखिम उठाया| हरेक के लिए यह कहना आसान था कि वे समुद्र किनारे तक गये पर सीता का कोई सूत्र उन्हें नहीं मिला| कोई भी उनसे प्रश्न नहीं करता| परन्तु लक्ष्मण, लक्ष्य था सीता को ढूँढना| वह थी प्रतिबद्धता| जोखिम उठाने वाला दृष्टिकोण हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है| इससे असीमित ऊर्जा और संभावनाओं का प्रस्फुटन होता है| इसके लिए, फले हमको अपने अंदर से असफल होने की लज्जा बाहर निकालना पड़ता है|
‘क्या सीता को ढूँढने के अभियान के वक्त अंगद का व्यवहार अजीब नहीं था?’
‘कैसे?’ राम ने पूछा|
‘अपने दल के सदस्यों को प्रेरित करने के स्थान पर उसने उन्हें निराश करने की कोशिश की| इसके अलावा उसने सुग्रीव को अपशब्द कहे और युवराज जैसे पद से न कहने वाले वचन कहे|’
‘लक्ष्मण, अंगद के भय असुरक्षा की भावना से उपजे हैं| ऐसा युवा जो कि अपनी संभावनाओं के प्रति शंकालू हो और जो जोखिम लेने में रूचि न रखता हो, वह असफलता से घबराएगा ही| हमें उसे मजबूती प्रदान करनी होगी और उसे आत्मविश्वास से भरना होगा| मैं युद्ध से पहले यह काम करूँगा|’
लक्ष्मण को अपनी ओर देखता पाकर राम ने कहा,”लक्ष्मण, असफलता का भय हमें अपनी पूरी शक्ति से काम करने से रोकता है| एक बात बताओ, क्यों कोई भी वानर इस अभियान पर जाने के लिए तैयार नहीं था? वे सब असफलता से डरे हुए थे, उन्हें शर्म आ रही थी कि अगर वे असफल हो गये तो वे सुग्रीव का या मेरा सामना कैसे करेंगे|’
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मेघनाद ने अपने रथ पर हाथ-पैर बांध कर खड़ी की गई स्त्री को दिखाते हुए गरज कर कहा,” राम यही वह स्त्री है न जिसके लिए तुम युद्ध कर रहे हो| आज मैं तुम्हारे सामने इसका अंत कर देता हूँ”|
ऐसी घोषणा करके मेघनाद ने अपनी तलवार स्त्री के सीने में घोंप दी और दूसरे वार में स्त्री का सिर धड़ से अलग कर दिया| इस वीभात्स्कारी कृत्य ने सभी को स्तब्ध कर दिया| हनुमान ने कूदकर स्त्री के मृत शरीर को हथियाना चाहा पर मेघनाद हनुमान की उम्मीद से ज्यादा तेज गति से अपने रथ को युद्धभूमि से दूर ले गया|
दुखी हनुमान और कुछ अन्य सैनिक रोते हुए राम के पास पहुंचे| कुछ पल के लिए राम भ्रमित हो गये और फिर धीरे से धरा पर बैठ गये|
‘क्या तुम्हे विश्वास है वह सीता ही थी?’ राम ने मंद स्वर में पूछा|
स्तब्ध हनुमान के कंठ से स्वर न निकला पर उसने सिर हिलाकर अनुमोदन किया|
राम को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ|
विभीषण भाग कर आया और कहा,” राम, यह सब माया का खेल है, इसके जाल में मत फंसना| युद्ध के बीच में हारते हुए दुश्मन पर क्यों भरोसा किया जाए? राम, रावण और उसका पुत्र दोनों मायाजाल के स्वामी हैं| हनुमान भी घटना का अनुमोदन करें तो भी मैं विश्वास नहीं कर सकता कि सीता को ऐसे मारा जा सकता है| राम, भावनाओं को अलग रख कर सोचो, रावण सीता को क्यों मारेगा?”
लक्ष्मण को विभीषण की बात पर भरोसा नहीं हुआ,” विभीषण, वह क्यों ऐसा नहीं करेगा? रावण पहले ही अपनी आधी से ज्यादा सेना, अपने भाई और बहुत सारे करीबी रिश्तेदारों की आहुति इस युद्ध में दे चुका है| यह बदला है| यदि वह हार भी गया तो वह हमें सीता को वापिस क्यों करेगा?”
“लक्ष्मण, मैं रावण को आपसे ज्यादा जानता हूँ| रावण एक अहंकारी राजा है और उसके अहं को जो पोषित करे उसे वही काम और रास्ते भाते हैं| सीता को मारने का विकल्प उसके लिए कभी मायने नहीं रख सकता, क्योंकि ऐसा करने से उसके दिमाग में उसके अपने बारे में सर्वश्रेष्ठ योद्धा, सर्वश्रेष्ठ राजा, और धरती पर जन्में सर्वश्रेष्ठ पुरुष की छवि खंडित हो जायेगी| राम, ऐसा आदमी मेघनाद को सीता को युद्धस्थली पर लेकर आने की अनुमति क्यों देगा? और मेघनाद रावण से जुड़े किसी भी मामले में अपनी तरफ से कोई भी निर्णय नहीं लेगा|
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(मूल अंग्रेजी से अनुवादित)