मनुष्य का विकास

मैं सबसे पहले घड़ी था
फिर मछली बना
उसके बाद पेड़
पेड़ के बाद हुआ मनुष्य।

मैं मनुष्य बनकर
घड़ी का कान उमेठने लगा हूँ
मछली खाने लगा हूँ
पेड़ काटकर
घर के लिये दरवाजा बनाने लगा हूँ
चेहरा छिपाने लगा हूँ।

(विमल कुमार)

3 टिप्पणियां to “मनुष्य का विकास”

  1. मनुष्य का विकास,
    जीवन का ह्रास,
    मनुष्यता का विनाश!

  2. क्या बात है सच्चाई बयाँ करती कविता मन को छु गयी

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