तो एक गीत ज़रूर लिखता
गीत लिखता…
तुम्हारे नाम
रसपूर्ण…
भावपूर्ण…
स्नेहसिक्त …
प्रेममय…
गीत,
जो होता अभिव्यक्ति…
तुम में मेरी श्रद्धा का…
मेरे मित्रवत स्नेह का…
मेरे उद्दाम प्रेम का…
गीत,
जो जगाता तुम्हारे मन को…
हौले से
जो खोलता…
हृदय कपाटों को
जो कानो में घुल के
उतर जाता गहरे मन में
गीत,
लिखता…
तुम्हारे रक्तिम होंठो पे
गहरे झील से नयनो पे
उठती गिरती चितवन पे
तुम्हारे उन्नत यौवन पे
साँसों के आन्दोलन पे
भावनाओ के ज्वार पे
और दिल में दबे प्यार पे
पास आओ तो शायद शब्द ढल जाएँ
गीत में
तुम्हारे बिना तो
शब्द
खोखले हैं
बेमानी हैं
गीत क्या खाक बनेंगे?
(रजनीश)