तारों पार कोई रोया

कमरे की दीवारों के
सो जाने के बाद
करवटों से उकताई हुई आंखें
छत को तक रही थीं
यूँ ही जाने क्यों ढ़लके
दो आंसू
जैसे कहते गए
तू ही नहीं दुखी
दूर तारों के पार
कोई तुझको रोता है
सुबह फूलों पर पड़ी शबनम
गवाह थी
दूर तारों के पार
ज़रूर कोई रोया था

(रफत आलम)

One Comment to “तारों पार कोई रोया”

  1. कमरे की दीवारों के
    सो जाने के बाद
    करवटों से उकताई हुई आंखें
    छत को तक रही थीं –

    itne seedhe saral shabd aur itna adbhut ahsaas !!

टिप्पणी करे