मेरे मन ने देह को त्याग दिया है
और वह
बिस्तरे के सामने
ठीक सामने तस्वीर टांगने वाली
खूंटी पर जा बैठा है |
करवट पड़ी तुम्हारी आँखें
अब भी खुली हैं
जिनमें मेरे मन के ही प्रश्न हैं
सखे, सुन
मेरी देह से मेरे मन का न ले भान
जब तू मुझमें निमग्न हो
छूएगी अपने ही प्रान
तो पायेगी,
मन तो मेरा चिर तेरा कामी
पर देह अभ्यासी दुनियावी अनुगामी
मैं तो जब तुझमें डूबा था,
उस रात्री प्रथम
तब से,
बंद वहीं हूँ,
डूबता, तिरता, उतराता
तेरी ही साँसों की लय में,
तेरे ही प्राणों के मद में!