गुज़रा कहाँ कहाँ से जैसी प्रसिद्ध कृति की रचना करने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार श्री कन्हैयालाल नंदन मृत्यु का दामन पकड़ जीवन का साथ छोड़ गये।
सत्तर के दशक से अस्सी के दशक के शुरु के काल में बचपन व्यतीत करने वाले ऐसे करोड़ों हिन्दी भाषी लोग होंगे जिन्होने अपने बचपन में नंदन जी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली बाल-पत्रिका पराग के द्वारा बाल-साहित्य के मायावी, कल्पनात्मक और ज्ञानवर्धक संसार में गोते लगाकर गंभीर और श्रेष्ठ साहित्य पढ़ने की ओर कदम बढ़ाने के लिये आरम्भिक शिक्षा दीक्षा प्राप्त की।
इसी पीढ़ी ने थोड़ा बड़े होकर नंदन जी के सम्पादन में प्रकाशित होने वाली पत्रिकाओं सारिका और दिनमान के जरिये देश-विदेश का साहित्य पढ़ने और सम-साअमायिक विषयों को समझने की समझ विकसित की।
लोग नंदन जी का प्रभाव धर्मयुग के द्वारा भी महसूस करते रहे जहाँ वे उप-सम्पादक थे।
करोड़ों हिन्दी भाषियों को नंदन जी का जाना ऐसे ही लगेगा मानो बचपन में एक सितारा उनसे जान पहचान करने आया था और वे उसके लिखे शब्दों या उसके द्वारा छांटे शब्दों के आलोक में जीवन पथ पर आगे बढ़ते रहे और लुभावनी मुस्कान वाला वह सितारा आज बुझ गया।
धन्यवाद श्री कन्हैयालाल नंदन को एक पूरी पीढ़ी को साहित्यिक संस्कार देने के लिये।
ईश्वर नंदन जी की आत्मा को शांति प्रदान करे।