संबंध में शून्यता को प्रेम भर देता है, संसार से कर्म संबंध जोड़ देता है, अथाह अकेलेपन में आस्था ईश्वर रूपी बंधन से जोड़कर भराव कर देती है पर आतंरिक शून्यता का क्या किया जाए? वह तो रहती ही है, पर उसका भी एक परम उपयोग है जो कुँवर नारायण अपनी इस छोटी लेकिन अनूठी कविता में सुझाते हैं|
एक शून्य है
मेरे और तुम्हारे बीच
जो प्रेम से भर जाता है|
एक शून्य है
मेरे और संसार के बीच
जो कर्म से भर जाता है|
एक शून्य है
मेरे और अज्ञात के बीच
जो ईश्वर से भर जाता है|
एक शून्य है
मेरे ह्रदय के बीच
जो मुझे मुझ तक पहुँचाता है|
(कुँवर नारायण)
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