फ़रवरी 10, 2017
संबंध में शून्यता को प्रेम भर देता है, संसार से कर्म संबंध जोड़ देता है, अथाह अकेलेपन में आस्था ईश्वर रूपी बंधन से जोड़कर भराव कर देती है पर आतंरिक शून्यता का क्या किया जाए? वह तो रहती ही है, पर उसका भी एक परम उपयोग है जो कुँवर नारायण अपनी इस छोटी लेकिन अनूठी कविता में सुझाते हैं|
एक शून्य है
मेरे और तुम्हारे बीच
जो प्रेम से भर जाता है|
एक शून्य है
मेरे और संसार के बीच
जो कर्म से भर जाता है|
एक शून्य है
मेरे और अज्ञात के बीच
जो ईश्वर से भर जाता है|
एक शून्य है
मेरे ह्रदय के बीच
जो मुझे मुझ तक पहुँचाता है|
(कुँवर नारायण)
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जनवरी 11, 2014
पतित है वह 
या कि चेतना उसकी
है सुप्त प्राय:
दिवस के प्रारम्भ से
अवसान तक
धुंधलका सा है
– सोच में भी
– कर्म में भी
-देह में भी
तिरती घटिकाएं
प्रात: की अरुनोदायी आभा
या कि तिमिर के उत्थान की बेला
शून्यता की चादर से हैं लिपटीं
सूनी आखों से तकती है
समय के रथ की ओर!
अल्हड यौवन की खिलखिलाहट
गोरे तन की झिलमिलाहट
युगल सामीप्य की उष्णता
युवा मानों की तरंगित उर्जस्विता
को-
सराहकर भी अनमना सा,
अन्यमनस्क शुतुरमुर्ग!
पहिये की रफ़्तार से
संचालित जीवन
जैसे कि हो पहिये ही का एक बिन्दु
एक वृत्ताकार पथ पर
अनवरत गतिमान
पर दिशाहीन!
– कोई इच्छा नहीं
– कोई संकल्प नहीं-कोई माया नहीं
-कोई आलोड़न नहीं
बस एक मशीन भर!
एहसास है कचोटता
जीवन चल तो रहा है
पर कहीं बुझ रही है आग
धीरे-धीरे, मर-मर कर
आत्मा की चमक
होती जाती है मंद
क्षण-प्रतिक्षण!

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जनवरी 6, 2014
यह उसका पारदर्शी मन 
जब पूछा,
उसने दिया उत्तर
ना था प्रश्न
ना था उत्तर
तब गुरु
के पास मन में
न था शायद कुछ भी !
उसका मन सतत
ना था आदि,
न हैं अंत
और मेरा मन
जिसका था जन्म
होगी उसकी मृत्यु
यही है शून्य का सत्व!
सभी पाप सभी कर्म
इन तीनों लोकों के
धुंधलाकर हो जायेंगे लुप्त
मेरे साथ ही!
(Zen Ikkyu की एक कविता का अनुवाद)

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दिसम्बर 12, 2013
कर्मगति पर अकर्मण्यता
फिसलन की हरियाली-रपटीली राह
बंद कमरों में कैद
बुद्धि और चेतनता –
कोई तो राह होगी?
जहां पर दृष्टि ठहरे पार पथ के –
जहाँ पर त्वरित हो जीवन शक्ति
हो प्रकाशित किसी सार्थक संकल्प से
पर होगी कब मुक्ति मन की-
कब खुलेंगे बंद कमरों के रौशनदान?

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