उजाला करने के लिए
सलाम आपको बाबा!
करोड़ों आखों को
आज यही ईमान की रौशनी चाहिए
अन्यथा
गाँव का सबसे ईमानदार आदमी
शराब के ठेकेदार से
सरपंच का चुनाव हारता रहेगा
रातो-रात बदलती रहेंगी निष्ठाएं
माहौल की सड़न इसी तरह
सदा बिकने वाले को
मेले का खरीदार बना देती है
जड़ों में फैली गंद को
कमल ने सर पे रख लिया है.
यानी व्यवस्था की खराबी को
जनता आवश्यकता मानने लगी है
मन से रोती है परन्तु
खुश-खुश ‘सुविधा शुल्क’ दे रही है
ले रही है
आप बाखूब जानते हैं बाबा साहिब!
ये वह दुनिया है जहाँ
मसीहाओं के उजालों का
स्वागत सदा सियारों ने किया है
जो मौका पाते ही सूली में कीलें ठोकते हैं।
हमाम के ये ही नंगे
कल आपके साथ हो लेंगे
कुछ तो अभी से शेर की बोली बोल रहे हैं।
ये केवल सत्ता के दलाल हैं
इन्हें तख्ते नही तख़्त की है आरज़ू
इन्होने सदा ही संवदनाओं का शोषण किया है
इन्होने ही पनपाया है
भ्रष्टाचार को विष वृक्ष
इन बेईमानों को दूर रखना है ज़रूरी
कल हमें इन्ही के पास कैद
काले धन को आज़ाद कराना है।
शोषण से त्रस्त सारा देश
आपको आशा से देख रहा है
लाखों दीपक चल पड़ने को हैं आतुर
आपके उजाले के साथ।
कल कश्मीर से कन्याकुमारी तक
करोड़ों नारे लगने तय हैं
भ्रष्टाचार मुर्दाबाद!
कल ज़रूर मैली धूप उजली होगी।
(रफत आलम)