मंत्री!
जाकर देखो
ये महल के बाहर पटाखा चलाने की
हिम्मत किसने की है?
हुज़ूर!
बम विस्फोट हुआ है
आतंकवादी हमला।
मंत्री!
तुम एकदम नाकारा हो
व्यापारी मच्छरमार बत्ती बना सकता है
तुमसे ससुरी आतंककारी मारक
टिकिया भी नहीं बनवाई जाती,
कहाँ थे सुरक्षा के मुहाफिज़?
हुज़ूर!
सफेदपोशों की
मोटी तोंदों की हिफाज़त में लगे है
ताकि कहीं घोटाले न उगल दें।
अच्छा..अच्छा ये तो तुमने ठीक किया,
रेड अलर्ट करा दिया।
जी हुज़ूर!
मीडिया के सामने हमारी वही
आतंकवाद के विरुद्ध
पुरानी लंबी लड़ाई वाली
टेप चलवा दो।
जी हुज़ूर!
चौपट राज फिर सो गए!
अंधेर नगरी के वासी
गूंगे बहरे अंधे
मांस के लोथड़ों में
उन्हें ढूंढ कर थक आये
जो कभी परिजन थे
आदमी की ओलाद थे
पिता भाई पति …
तीन दिन का शोक
चार-पांच लाख रुपये जिंदगी की कीमत के एवज
सारी जिंदगी का दर्द
कुछ एक घरों में सिमट कर रह जाता है।
चौपट राज कायम रहे
सलामत रहें मंत्री, संत्री और कारिंदे
सरकार पर कोई आंच नहीं
मीडिया भी नई सनसनी की तलाश में
निकल चुका है,
जनता को भी संवेदनहीनता मुबारक
लहू की नदी रास्ते में बहते बहते
कई लावारिस अटेचियाँ दिखा रही है
जिन्हें कोई नहीं देख रहा है
भागमभाग में मशीन बना आदमी
फिर बेपरवाह हो गया है
फिर किसी हादसे के इन्तेज़ार में है शहर।
(रफत आलम)