हर तरफ बस देखना तुझ को ही
धुंध में लिपटा हर चेहरा तेरा
सरदी की रातों में तलाशना गर्मी तुझ में
रात रानी की महक को तेरा नाम देना
तुम दिल में गहरे जाकर बस गयीं
और मैं
बस वहीं रुक गया
उन तेरह दिनों की दीवार के पास
यहीं से उस पार झाँक लेता हूँ
जहां से मुस्करा कर
तुम चले गये थे
तुम्हारे न होने का अहसास भला क्यूँ कर हो…
हर सिम्त फैली है खुशबू तेरी
चार सू नुमायाँ है चेहरा तेरा
(रजनीश)