पुकार लगाते तो हैं
पर बहुधा बिन पानी चले आते हैं
आते हैं
तो हर चीज को सफेदी से ढक देते हैं
चारों ओर ऐसा प्रतीत होता है
जैसे धुंध ने घर कर लिया हो
शामें धुंधला जाती हैं
मेरे कमरे में अंधियारा बढ़ जाता है
मैं गमन कर जाता हूँ
बीते काल में –
मोमबत्ती के हल्के प्रकाश से
भरे कमरे में!
जब आतिशदान में लकडियाँ जलती हैं
तो कभी भी बोल नहीं पाता हूँ
बस खो जाता हूँ
आग की लपटों से बनती बिगड़ती आकृतियों में|
तुम्हारी त्वचा का गोरापन ओढ़ने लगता है
हल्का लाल-गुलाबी रंग
जब तपन की गहन तरंगें
और लालसा घेर लेती है
तुम्हारा खूबसूरत चेहरा
दमकने लगता है ऐसे
जैसे तालाब से कमल खिलकर निकलना शुरू करने लगता है
जिस्मानी उतार चढ़ाव
चमकने लगते हैं
और एक गर्म एहसास चारों ओर बहने लगता है
और तुम्हे और मुझे अपने पंखों में समेट लेता है
सब कुछ उड़ने लगता है
ऐसे जैसे सब कुछ बादल ही हो गया है
कमरे में निस्तारित होने लगता है
श्वेत धीरे-धीरे लाल में
ऐसा लगने लगता है
हमारे जिस्म पिघल जायेंगे
मोमबत्ती की लौ
मोटी हो और तेजी से जलने लगती है
बादल रक्तिम लाल हो जाते हैं
और मुझे प्रतीत होता है
कि सर्दी के बादल लाल तप्त हो गये हैं
और वास्तव में
वे बिन पानी के ही हैं!