बहुत देर से शब्द मिल नहीं रहे हैं…
खाली कुएं से तो अपनी ही आवाज़ लौटेगी न
अब किसको आवाज़ दूं?
किसको पुकारूं??
दिल का खला भरा नहीं अब तक
तेरे इंतज़ार में आँखें पत्थर हो गयीं
आवाज़ भी अपनी ग़ुम गयी जैसे
दिल के कुएं से टकरा के वापस जो नहीं आई…
सोचता हूँ कि आखिरी ख़त भी लिख रखूं
तुम इस का जवाब मत देना
मैं मुन्तजिर न रहूँगा
ये सिलसिला-ऐ-तबादला-ऐ- ख्याल रुक जाये अब
बेवज़ह गर्म ख्यालों का जवां रहना ठीक तो नहीं
ये सिलसिला सौ नए अरमानो का वायस बनता है
ये नहीं टूटेगा तो लाजिमी दिल टूट जायेंगे
बंद करना ही होगा हर रास्ता
हर झरोखे के मुंह पे पत्थर रखना ही होगा
मुलाकात की हर वज़ह मिटानी ही होगी
मिटाने होंगे
इस किराये के मकां के पते के निशां
कल से मैं तुम्हे नहीं मिलूँगा यहाँ…