जिन यादों को नींद न आये
उन्हें सुलाना बहुत कठिन है
दिल कि दुनिया जिन्हें बसाए
उन्हें भुलाना बहुत कठिन है|
लिखती होगी नाम मेरा वो
आज भी अपने तकिये पर
यह तो केवल सुई ही जाने
चली वो कितना बखिए पर |
दोनों की इस व्यथा कथा को
आज सुनाना बहुत कठिन है|
बहुत ज़मीनी दूरी है पर
रहती है वो पास ही मेरे
उसकी यादों में गुजरे जों
वे पल हैं सब खास ही मेरे|
क्यों मैं उसकी कसमें खाऊं
जिसे बुलाना बहुत कठिन है |
सच कहता हूँ तुमसे यारों
मेरी तरह ही जीती होगी
मेरे बिना ज़िंदगी को वह
ज़हर समझकर पीती होगी|
उसका नाम बता देता पर
सच झुठलाना बहुत कठिन है|
{कृष्ण बिहारी}