“नारी” पुरुष की सहचर है, सहगामी है, संगी है, साथी है, और उसकी क्षमताएं किसी भी मायने में पुरुष से कमतर नहीं हैं|
नारी के पास पुरुष की गतिविधियों की बारीकियों में सम्मिलित होने का अधिकार है, और उसके पास, जैसे पुरुष के पास स्त्री के प्रति है, पुरुष जैसी ही स्वतंत्रता और छूट है|
सेवा और त्याग की आत्मा के जीते जागते उदाहरण के रूप में मैंने नारी को पूजा है|
प्रकृति ने जैसे नारी को स्वहित से परे की सेवा की आत्मिक शक्ति से नारी को परिपूर्ण किया है, उस शक्ति की बराबरी पुरुष कभी भी नहीं कर सकता|”