गंगा तीर पर बैठकर
गंगा पर कुछ लिखना !
शरद की सांझ की सिमटी नवयौवना
या कि ग्रीष्म की सुबह की सकुचाती ललना
और या भादों की उफान भरी कामातुरा
घाटों पर आए न आए
मसि-कागद समेत मन को बहाए ले जाती है!
आप छंदों में उसे बाँधने को कहते हैं
या कि कटोरा भर पानी से उसे परखने को
और या मेरी क्षुद्रता से उस असीम को तौलने को
समझ में आए न आए
शुभ्र-कलुष समेत मन को बहाए ले जाती है!