अबकी बार बारी कौरवों की है।
क्या उसे ध्यान नहीं आया दुर्योधन की नयी दुरभिसंधि का ?
अपने परिवार के वृद्ध परिजनों को चुप कर देने का अभियान ?
ऐसा नहीं है कत्तई
कि युद्ध में विजेता वे होते हैं
जो किसी युद्ध में हुआ करते हैं योद्धा ।
सच तो यह है,
कि विजेता होते हैं वे,
जो होते हैं, उस युद्ध के प्रायोजक ।
और अब वे मांगेंगे अपने-अपने पारितोषिक
एक एक रथ के लिए, दस दस रथ,
हर एक अश्व के बदले सौ-सौ घोड़े।
क्या नीतियां अलग और भिन्न होतीं
यदि विजयी हुए होते पांडव ?
नीतियों का तो नहीं होता कोई अर्थ,
महत्वपूर्ण होती है तत्परता।
सत्य भी नहीं होता कोई मुद्दा,
महत्वपूर्ण होता है यह
कि झूठ को कौन कितनी अच्छी तरह से बेच सकता है।
शब्दाडंबर असत्य को बेहतर ढंग से छुपाते हैं
संकोच और संयम के मुकाबले,
और यदि धर्म का हो पीठ पर हाथ,
तब तो हो जाता है चमत्कार।
जीते कोई भी कोई युद्ध,
हर बार मारे जाने वाले लोग वही-वही होते हैं।
उन्हीं की हुआ करती हैं विधवाएं,उन्हीं के होते हैं अनाथ।
जितना चतुर-चालाक शासन,शत्रु की उतनी तत्काल मृत्यु।
इसका नहीं है कोई अर्थ कि क्या जला …
खांडव या लंका ?
धुएं का रंग है काला,
जिसमें से आती है जले हुए पक्षियों, वृक्षों
और आदिवासियों की गंध।
अभी तो बहुतेरे वनों की कटाई है शेष,
बहुत से खदानों का होना बाकी है उत्खनन।
कुछ बलिदान तो अनिवार्य ही हुआ करते हैं,
उन्हें टाला नहीं जा सकता।
पेड़ों पर लटकेंगे अभी और भी कई शव,
कुछ और भी शव ढोये जायेंगे चप्पुओं-नौकाओं में।
जो अशक्त है,
वह जीवित है किसी तरह,
अनाम, भूमिहीन,
परंतु यही तो है पांडवों की विरासत
अपने समूचे सामर्थ्य के साथ ढोई जाती हुई।
संजय अंधे को अंधा बनाये रखेगा,
विजेता के पक्ष में करता रहेगा वह हर घटना की व्याख्या,
बस, सिर्फ भूत-प्रेतों के मुंह बंद रखने की आवश्यकता है।
मान लो,
वे जो मरे पांडवों के पक्ष में लड़ते हुए
और उनके साथ कौरव
किसी साझा जुलूस में एक साथ उठ खड़े हों ?
नदियों को तो हम जोड़ सकते हैं, लेकिन पहाड़ ?
कैसे कोई तय करेगा कि जो सो रहे हैं, वे सोये ही रहेंगे सदा ?
क्या अब वे कोई नया महाकाव्य लिखेंगे,जिसमें न पांडव होंगे न कौरव ?
शकुनि यह भी समझता है
दस साल, मात्र दस वर्ष उसे चाहिये
कोई भी निर्धन तब नहीं रहेगा जीवित
और
नये शिशुओं को जन्म देने का साहस
नहीं कर पायेंगी स्त्रियां।
( के. सच्चिदानंदन ) अनुवाद – (उदय प्रकाश)
(10 जून, 2014 को, सुप्रसिद्ध भारतीय कवि के. सच्चिदानंदन की मलयालम में लिखी कविता के उन्हीं के द्वारा अंग्रेज़ी में अनुदित पाठ के आधार पर अनुवाद )
साभार : उदय प्रकाश