मई 21, 2013
गीतों में ही रहा करोगे
शब्द-शब्द में बहा करोगे
मुझे तलाशोगे उनमें तुम
फिर भी मीत नहीं पाओगे
मेरे गीत नहीं पाओगे…
तुमसे मैंने कब कुछ माँगा
फिर क्यों तोड़ दिया यह धागा
खोज खोज कर थक जाओगे
ऐसी प्रीत नहीं पाओगे
मेरे गीत नहीं पाओगे…
तुम्हे एक संसार मिला है
और बहुत-सा प्यार मिला है
फिर भी ज़रा सोच कर देखो
यह मनमीत नहीं पाओगे
मेरे गीत नहीं पाओगे…
भीतर-बाहर कितना रो लो
या फिर पारा-पारा हो लो
साँसों ने जो तुम्हे सुनाया
वह संगीत नहीं पाओगे
मेरे गीत नहीं पाओगे…
{कृष्ण बिहारी}
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जनवरी 10, 2011
ढ़ाई अक्षर का छोटा सा नाम
फैले तो सागर- सहरा बन जाये
यानि दुनिया बन जाये
सच्चा शब्द…
आसमानी किताब बन के उतरे
अवतार-पैगम्बर के होठों पर
कुरान-गीता बन जाये
किसी सोच में मग्न कलम से
कालजयी रचना बन जाये
सामवेद होकर सच्चा शब्द
सितार-वीणा बन जाये
जुल्म-अन्याय के विरुद्ध
इन्कलाब की ध्वजा बन जाये
झूठा शब्द…
अज्ञान –अधर्म का विधाता
महाभारत –कलिंग जन्माता
बारूदी ढेरों पर नाचने लगता है
मीन-काम्फ उभारने लगता है
सौ झूठ को सच बनाता है
हिरोशिमा – नागासाकी जलाता है
सूली–ज़हर-गाली-गोली
ईसा-मंसूर-सुकरात–लूथर–गाँधी
जलाये जाते किताबों के ढेर
खेली जाती आदमी के लहू से होली
खूनी इबारत बन कर झूठा शब्द
काले अल्फाजों से रौशनी मिटाता है
मानव मन का अँधेरा बन जाता है
समय की किताब नकल करते
एक बंजर ज़हन को कबसे
शब्द के बीज की है तलाश
अहसास की बारिश में
कभी उग आये काश !
(रफत आलम)
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