जनवरी 18, 2014
बच्चों की दुनिया की सच्चाई!
अब जाकर है मैंने पाई,
देखे सारे खेल-खिलौने
वयस्कों के ओढ़ने-बिछौने
आकार-प्रकार और रूप बदलकर
खेलते रहते हम जीवन भर!
बस,
करते रहते यह व्यवहार
निपट भूलकर वह सब सीख
जो बरजते आए बच्चों पर
वही करें लागू अपने पर
तो जीवन हो जाए मधुरकर!

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दिसम्बर 16, 2013
प्रेम यदि है नाम 
जीवन के सर्वाधिक उजले रूप का
तो फिर,
लदी क्यों है मन पर
संशयों की टोकरी?
प्रेम यदि है पावनता
है यदि प्रेम,
एक निश्छल सरलता
तो चक्र क्यों हैं, संशयों के?
प्रेम यदि है पूर्णता
प्रेम यदि है प्रेम
तो फिर,
भंवर क्यों हैं, उलझनों के?

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फ़रवरी 17, 2013
वही कहानी मत दुहराओ
मेरा मन हो विकल न जाए
भावुकता की बात और है
प्रीत निभाना बहुत कठिन है
यौवन का उन्माद और है
जनम बिताना बहुत कठिन है
आँचल फिर तुम मत लहराओ
पागल मन है मचल न जाए
दर्पण जैसा था मन मेरा
जिसमें तुमने रूप संवारा
तुम्हे जिताने की खातिर में
जीती बाजी हरदम हारा
मेघ नयन में मत लहराओ
सारा सावन पिघल न जाए
तोड़ा तुमने ऐसे मन को
पुरवा जैसे तोड़े तन को
सोचो मौसम का क्या होगा
बादल यदि छोड़े सावन को
मन चंचल है मत ठहराओ
अमरित ही हो गरल न जाए
कदम कदम पर वंदन करके
यदि में तुमको जीत न पाया
कमी रही होगी कुछ मुझमे
जो तुमने संगीत न पाया
तान मगर अब मत गहराओ
जीवन हो फिर तरल न जाए
{कृष्ण बिहारी}
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