भूख और पसीने के बीच
गहरा है रिश्ता।
मजदूर
फावडा, कुदाल और मशीन पर झुका हुआ
तने बाजू , खिंची हुई नसें
पिचके गाल तम्बाकू भरे
बहता हुआ पसीना
सारे दिन लगातार।
सरे शाम बदन की थकन
दारू के अड्डे से बहकती हुई
खाली जेब लौटती है।
झोंपड़ी की नन्ही भूखी आवाजें
आधा अधूरा चुग दुबक गयी हैं।
रात खाने पर होती है लड़ाई
कुटती है एक खाँसती औरत।
(रफत आलम)