जनवरी 6, 2014
यक्ष प्रश्न है
क्या पागलपन है?
क्यूँ पागलपन है?
यक्ष प्रश्न है…
उत्तर क्या दें?
उत्तर कैसे दें?
उत्तर किसे दें?
अब न तो शब्द बचे हैं
न जुबां रही है
किस भाषा को वो समझेगा?
अब जुबां क्या बदलेगी हमारी?
न उसका दिल बदलेगा…
प्रश्न बहुत हैं …
उत्तर कम हैं
कम क्या ?
कुछ के उत्तर ग़ुम हैं
जाओ दिल पे बोझ न लादो
अपने मन को मत अपराधो
आज से बस तुम इतना जानो
दोष तुम्हारा तनिक नहीं है
अपना दिल तो है ही पागल
उम्र के साथ नहीं चल पाया
अब तक बचपन में जीता है
टूटे चूड़ी के टुकड़ों को
सिरे गला कर फिर सीता है
दुनियादारी नहीं समझता…
तुमसे आगे नहीं देखता
तुम न होती तब भी इसका
हर हाल में होना ये था
पागल था…पागल है
पागल होना था…
सयानों के साए में इसका
दम घुटता है…

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फ़रवरी 27, 2013
कितने तूफानों से गुजरा
कितनी गहराई में उतरा
दोनों का ही कुछ पता नहीं
बस ऐसे जीवन बीत गया |
राजीव-नयन तो नहीं मगर मद भरे नयन कुछ मेरे थे
इन उठती-गिरती पलकों में खामोश सपन कुछ मेरे थे |
कुछ घने घनेरे से बादल
कब बने आँख का गंगाजल
दोनों का ही कुछ पता नहीं
बस ऐसे जीवन बीत गया
कब कैसे यह घट रीत गया|
जगती पलकों पर जब तुमने अधरों की मुहर लगाईं थी
तब दूर क्षितिज पर मैंने भी यह दुनिया एक बसाई थी |
कितनी कसमें कितने वादे
आकुल-पागल कितनी यादें
दोनों का ही कुछ पता नहीं
किस भय से मन का मीत गया
मैं हार गया वह जीत गया|
तुम जब तक साथ सफर में थे, मंजिल क़दमों तक खुद आई
अब मंजिल तक ले जाती है मुझको मेरी ही तन्हाई|
कब कम टूटा कब धूप ढली
उतरी कब फूलों से तितली
दोनों का ही कुछ पता नहीं
कब मुझसे दूर अतीत गया
बस ऐसे जीवन बीत गया
{कृष्ण बिहारी}
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फ़रवरी 17, 2013
वही कहानी मत दुहराओ
मेरा मन हो विकल न जाए
भावुकता की बात और है
प्रीत निभाना बहुत कठिन है
यौवन का उन्माद और है
जनम बिताना बहुत कठिन है
आँचल फिर तुम मत लहराओ
पागल मन है मचल न जाए
दर्पण जैसा था मन मेरा
जिसमें तुमने रूप संवारा
तुम्हे जिताने की खातिर में
जीती बाजी हरदम हारा
मेघ नयन में मत लहराओ
सारा सावन पिघल न जाए
तोड़ा तुमने ऐसे मन को
पुरवा जैसे तोड़े तन को
सोचो मौसम का क्या होगा
बादल यदि छोड़े सावन को
मन चंचल है मत ठहराओ
अमरित ही हो गरल न जाए
कदम कदम पर वंदन करके
यदि में तुमको जीत न पाया
कमी रही होगी कुछ मुझमे
जो तुमने संगीत न पाया
तान मगर अब मत गहराओ
जीवन हो फिर तरल न जाए
{कृष्ण बिहारी}
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मार्च 12, 2012
तुम आये तो रंग मिले थे
गए तो पूरी धूप गयी
शायद इसको ही कहते हैं
किस्मत के हैं रूप कई
भटकी हुयी नदी में कितनी बार बहेंगे हम|
फूल-फूल तक बिखर गए हैं
पत्ते टूट गिरे शाखों से
एक तुम्हारे बिना यहाँ पर
जैसे हों हम बिना आँखों के
फिर भी इस अंधियारे जग में हंस कर यार रहेंगे हम|
ह्रदय तुम्हारे हाथ सौंपकर
प्यार किया पागल कहलाये
तुमसे यह अनमोल भेंट भी
पाकर कभी नहीं पछताए
यहीं नहीं उस दुनिया में भी यह सौ बार कहेंगे हम|
संधि नहीं कर सके किसी से
इसलिए प्यासा यह मन है
इतने से ही क्या घबराएं
यह तो पीड़ा का बचपन है
इसे जवान ज़रा होने दो वह भी भार भी सहेंगे हम|
मिलने से पहले मालूम था
अपना मिलन नहीं होगा प्रिय
अब किस लिए कुंडली देखें
कोई जतन नहीं होगा प्रिय
कल जब तुम इस पार रहोगे तब उस पार रहेंगे हम …
{कृष्ण बिहारी}
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