दुनिया युद्ध, नफरत, आतंकवाद, पर्यावरण के ह्रास और मानवता में गिरावट जैसे मुद्दों से विनाश की ओर अग्रसर है तो ऐसे में अवसाद से घिरी मानवता को बचाने के लिए क्या वही सब कुछ याद न करना पड़ेगा जो मानव जीवन में श्रेष्ठ रहा है, जिसने जीवन को समृद्ध किया है!
श्याम, कान्हा, कृष्ण…मनुष्य रुप में जन्मे विराटतम स्वरुप हैं वे जीवन के।
क्या मनुष्य रुप में जीवन इससे बड़ा हो सकता है या इससे ऊपर जा सकता है?
कृष्ण को न याद करें तो किसे करें?
“कान वो कान है जिसने तेरी आवाज सुनी
आँख वो आँख है जिसने तेरा जलवा देखा”
कृष्ण की कथा का रसास्वादन अदभुत है| क्या तो आनंद है बाल-गोपाल की कथा कहने में, सुनने में, और देखने में|
और थोड़े बड़े हो चुके कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भी सदियों से मनुष्य को लुभाता आ रहा है|
सिर पर मोर मुकुट, गैया के पास थोड़े तिरछे खड़े, एक पैर पर दूसरा पैर रखे, बांसुरी बजाते कान्हा… वर्णन सुनने में हर बार लगता है जैसे गोकुल ही पहुँच गये हों… परम आनंद की अनुभूति होती है|
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अपने पिता महाराज उग्रसेन को राजगद्दी से उतारकर मथुरा का राजा बन बैठा अत्याचारी कंस अपनी चचेरी बहन देवकी को उसके विवाहोपरांत ससुराल पहुंचा कर आने के लिए अपने महल से निकल कर बाहर आया ही था कि एक ऋषिवर वहाँ आए और कहा,” राजन, आपके सैनिकों ने वन प्रदेशों में आतंक मचा रखा है, वे तपस्वियों की साधना भंग करते हैं| कई गुरुकुलों को तहस नहस कर चुके हैं| आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों की कन्याओं को ही नहीं वरन अब तो ऋषि कन्याओं को भी उठा लेने का दुस्साहस कर रहे हैं|
कंस ने कहा,” ऋषि बेकार की बातें मत करो| मेरे सैनिक वीर हैं और उनकी वीरता पर मुग्ध होकर वन प्रदेशों की कन्याएं स्वयं ही उनके साथ चली जाती होंगी| और मेरे राज्य की सीमाओं के अंदर रहने वाले सभी लोग, चाहे वे तपस्वी हे क्यों न हों, मेरे अधीन हैं, अगर वे मेरे सैनकों को कर नहीं देंगे, उनका कहना नहीं मानेंगे तो मेरे सैनिक उन्हें दंड देंगे ही|
“राजन, सत्ता का इतना नशा ठीक नहीं किसी राजा के लिए”|
“सुनो ऋषि अभी मैं अपनी बहन को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा हूँ| किसी और दिन आना और मेरे सैनिकों के विपरीत बातें करके उनकी छवि बिगाड़ने का प्रयास ना करो| जाकर तपस्वियों को समझाओ कि मेरे सैनिकों से न उलझें और वीर हमेशा ही धरती पर हर सुख को भोगते हैं| उन्हें कोई कन्या पसंद आयेगी तो वे उसे पाने का प्रयास करेंगे ही| आप लोगों में साहस हो तो उनसे लड़ो और पराजित करो उन्हें और अपनी कन्याओं की रक्षा कर लो| अब मेरा मार्ग छोड़ो”
कंस स्वयं ही रथ को हांकने बैठ गया|
रथ के चलने की आवाज और घोड़ों के हिनहिनाने की आवाजों के शोर के मध्य बादल गडगडाने की आवाज आती है|… ऋषि ने कंस को चेताते हुए कहा
“हे कंस, जिस बहन के प्रति तू इतना लाड दिखा रहा है, याद रखना इसकी आठ संतानों में से एक संतान – एक पुत्र, ही तेरे काल का कारण बनेगी”
कंस क्रोध और कुंठा से विचलित होते हुए गरजता है,” ऋषि अपनी वाणी पर नियंत्रण रखो और मेरी निगाह के सामने से दूर हो जाओ”|
ऋषि चला जाता है| कंस कुछ सोच में पड़ जाता है और कुछ पल पश्चात गरज कर कहता है,” देवकी, रथ से नीचे उतरो, तूने उस ऋषि की वाणी सुनी| मुझे, तुम दोनों, तुझे और तेरे पति, को मारना ही पड़ेगा, मैं जोखिम नहीं उठा सकता|”
देवकी रोने लगती है “भईया…”
वसुदेव याचना करते हुए कहता है,” महाराज, आप शक्तिशाली हैं, आपको ज्ञात ही है- आपको हमारी संतान से ख़तरा बताया गया है, आपकी बहन देवकी से तो आपको कोई जोखिम नहीं| उसे मारकर अपनी नवविवाहिता बहन को मारने का पाप आप क्यों अपने सिर लेते हैं| जब भी हमारे संतान होगी मैं स्वयं उसे लेकर आपके सामने उपस्थित हो जाउंगा|
कंस चेतावनी देता है,” देवकी, वासुदेव मुझसे कपट करने का प्रयास कदापि न करना, आज मैं तुम्हे जीवित छोड़े दे रहा हूँ| पर अब से तुम दोनों मथुरा में ही मेरे सैनिकों की देखरेख में रहोगे|”
कंस ने देवकी की छह संतानों को उनके जन्म लेते ही मार दिया| किसी तरह से देवकी और वासुदेव कंस से देवकी के सातवीं बार गर्भधारण होने की बात छिपाने में सफल रहे और वासुदेव द्वारा गोकुल में रहने वाले अपने एक रिश्तेदार के यहाँ सामाजिक कार्य में सम्मिलित होने हेतु अनुरोध करने पर कंस ने सैनिकों की देखरेख में पति-पत्नी को गोकुल जाने दिया, जहां देवकी का गर्भ, कंस के भय से गोकुल में अज्ञातवास में रह रही वासुदेव की एक अन्य पत्नी रोहिणी के गर्भ में प्रत्यारोपित कर दिया गया| वापिस मथुरा आकर देवकी ने फिर से गर्भवती होने और शिशु के गर्भ में ही मृत हो जाने की बात उड़ा दी| देवकी की आठवीं संतान के समय कंस कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था अतः उसने देवकी और वासुदेव को बंदी बना कर, कड़े सुरक्षा से घिरे अपने कारागृह में भेज दिया|
…जारी
….[राकेश]