कुछ थोड़ी सी चीज़ें तुम्हारी
मेरे पास रह गयीं थी
चार पांच तस्वीरें
एक नीली वाली,
एक लाल-काली वाली
एक वो भी जो मुझे बहुत पसंद रही है
वापिस भेज रहा हूँ
विभिन्न भावों वाली
छवियाँ तुम्हारी
जो अलग-अलग जगह
मैंने उतारी थीं
उंन दिनों
जब आँख में तुम छायी रहती थीं|
दिल में तो तुम अब भी अंकित रह जाओगी|
कुछ ख़त भी थे
पीले पड गये थे
इस अरसे में
और उनकी लिखावट से
सब कुछ जा चुका था
हर्फों के माने भी तो वही नहीं रहे
जो तुमने लिखे थे
यहीं बहा दिया उनको|
अब तो जब अदावत का भी ताल्लुक नहीं
तुम्हारी चीजें तुमको वापस कर दूँ
यही अच्छा है
थोडा कुछ और भी है
पर उतारूंगा तो दीवारें नंगी हो जाएँगी
दिल भी सूना हो जाएगा
आना
और अगर चाहो तो वापस ले लेना
लेकिन अब क्यूँ आओगी तुम?
तुम आओगी क्या?
(रजनीश)