आदमी की कीमत नहीं मानव अंगों का बाज़ार है बड़ा
रहम-करम, दया-करुणा, शराफत सब बेकार की बातें हैं
आत्महत्या करने पर मजबूर है बेबस सर्वहारा आदमी
ईमानदारी, इन्साफ, इंसानियत सब बेकार की बातें हैं
शहर में आजकल फैशन है दो रातें लिवइन रिश्तों का
इश्क, प्रीत–प्रेम, प्यार, मोहब्बत सब बेकार की बातें हैं
खूनेदिल का लिखा रद्दीभाव, सरकारी चालीसे चलते हैं
गद्य, कविता, समीक्षा, ज़हानत सब बेकार की बातें हैं
झूठ को सौ बार बोल कर सच बनाने वाले का दौर है
सत्य, यथार्थ, सच्चाई, हकीक़त सब बेकार की बातें हैं
सकून की ज़रूरत कहाँ तनाव पालने वाली बस्ती को
सूफी–दरबार, आध्यात्मिक-संगत सब बेकार की बातें हैं
ज़हानत – बुद्धिजीविता
(रफत आलम)