दुश्वारियां जिंदगी की तो पता थीं
कल भी|
ये फिरकते वृत्त है रौशनी के
किनारियाँ अंधेरों की तो पता थीं
कल भी|
बुद्धू बुद्ध की नींद भी गहरी
लाचारियाँ असमंजसों की तो पता थीं
कल भी|
सयानेपन की तुम्हारे भी सीमाएं हैं
पारियां बचपने की मेरी तो पता थीं
कल भी|
निर्वात तोडता है देह का चुम्बक
सीढियां लम्बी समाधानों की तो पता थीं
कल भी|
रिश्ते हैं कई मेरे और तुम्हारे तईं
गारियाँ सर्द अबोलों की तो पता थीं
कल भी|
कई तो हैं संजोग, ऐसे-वैसे
कलाकारियाँ कायनात की तो पता थीं
कल भी|
सिर्फ बोलों के आईने में रिश्तों का सच
दीवारियाँ रंग-ऐ-नस्ल की तो पता थीं
कल भी|
अपने-अपने सुखों में चटख आए दुख
बीमारियाँ सुखों -दुखों की तो पता थीं
कल भी|
प्यार भरे वो तरंगित, शर्मीले स्पंदन
यारियाँ दिल से दिल की तो पता थीं
कल भी|