काबे में मिले ना हमको सनमखानों
कुछ होश वाले जो मिले मयखानों में
मेरे जुनूं को तलाश जिस होश की है
फरजानों में पाया न मिला दीवानों में
अक्ल के फ़रमान सहन होते किससे
शुक्रिया तेरा जो रखा हमें दीवानों में
हुस्न, इश्क, यारी, ईमान, अकीदे खुदा
क्या नहीं बिकता है आज दुकानों में
मौत को भी जाने ठौर मिले न मिले
जिंदगी तो कटी किराए के मकानों में
कसले दौर में सांस लेने की है सज़ा
कांटे उग आये लोगों की ज़बानों में
कभी खापों के रुलाते फैसले भी देख
लैला मजनू तो पढ़े तूने दास्तानों में
नर्म मैदान ने गंदा कर के खा लिया
नदी पाक थी जब तक बही चट्टानों में
हँसी की महफ़िल में ज़रा होश आलम
ज़हर का भी पुट होता है मुस्कानों में
(रफत आलम)
फरजानों – बुद्धिमानों , फ़रमान – आदेश