काशी सध नहीं रही
चलो कबीरा!
मगहर साधें
सौदा-सुलुफ कर लिया हो तो
उठकर अपनी
गठरी बांधे
इस बस्ती के बाशिंदे हम
लेकिन सबके सब अनिवासी,
फिर चाहे राजे-रानी हों-
या हो कोई दासी,
कै दिन की लकड़़ी की हांडी?
क्यों कर इसमें खिचड़ी रांधे?
राजे बेईमान
वजीरा बेपेंदी के लोटे,
छाये हुए चलन में सिक्के
बड़े ठाठ से खोटे
ठगी, पिंडारी के मारे सब
सौदागर हो गए हताहत
चलो कबीरा!
काशी साधे नहीं सध रही,
तब मगहर ही साधें
(नईम)