क्या पागलपन है?
क्यूँ पागलपन है?
यक्ष प्रश्न है…
उत्तर क्या दें?
उत्तर कैसे दें?
उत्तर किसे दें?
अब न तो शब्द बचे हैं
न जुबां रही है
किस भाषा को वो समझेगा?
अब जुबां क्या बदलेगी हमारी?
न उसका दिल बदलेगा…
प्रश्न बहुत हैं …
उत्तर कम हैं
कम क्या ?
कुछ के उत्तर ग़ुम हैं
जाओ दिल पे बोझ न लादो
अपने मन को मत अपराधो
आज से बस तुम इतना जानो
दोष तुम्हारा तनिक नहीं है
अपना दिल तो है ही पागल
उम्र के साथ नहीं चल पाया
अब तक बचपन में जीता है
टूटे चूड़ी के टुकड़ों को
सिरे गला कर फिर सीता है
दुनियादारी नहीं समझता…
तुमसे आगे नहीं देखता
तुम न होती तब भी इसका
हर हाल में होना ये था
पागल था…पागल है
पागल होना था…
सयानों के साए में इसका
दम घुटता है…